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बिहार विधानसभा चुनाव 2020: नीतीश कुमार ने ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा को धरातल पर उतारा

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 आज जरूरत है सामाजिक सद्भाव और न्याय के साथ विकास की इस राजनीति को दूसरे चरण में ले जाने की। निश्चित रूप से यह काम नीतीश जैसे दूरदर्शी दृढ़ संकल्पित एवं ईमानदार नेतृत्व में ही संभव है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 08:47 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 11:18 AM (IST)
बिहार विधानसभा चुनाव 2020: नीतीश कुमार ने ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा को धरातल पर उतारा
बिहार में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर समाज में किसी तरह का तनाव या टकराव न हो।

संजय कुमार झा। वर्ष 2005 से पहले की चर्चाओं को याद कीजिए। यह जुमला आम था कि ‘बिहार का कुछ नहीं हो सकता।’ इसे ‘बीमारू प्रदेश’ और ‘देश पर बोझ’ कहा जाता था। निगेटिव ग्रोथ में पहुंचा वही बिहार आज देश का सबसे तेजी से विकसित होता राज्य है। निराशा के अंधकार से निकल कर देश का ग्रोथ इंजन बन गया है। यह ‘नया बिहार’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम है।

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‘आलू और बालू वाले प्रदेश’ के नवनिर्माण के संकल्प के साथ सत्ता में आए नीतीश कुमार ने देश में पहली बार कहा, सिर्फ विकास नहीं, ‘न्याय के साथ विकास’। यानी सभी तबकों-वर्गो और इलाकों का विकास। पिछले 15 वर्षो में कई ऐसे मौके आए, जब बिहार ने देश को राह दिखाई। बात चाहे समाज के वंचित तबकों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने की हो, महिलाओं के सशक्तीकरण की या फिर गवर्नेस की दृष्टि से नए प्रयोग करने की, नीतीश कुमार द्वारा की गई कई पहल को बाद में दूसरे राज्यों या पूरे देश में लागू किया गया।

लोकतंत्र का बुनियादी विचार है कि तंत्र के शक्ति-संचालन में लोक स्वयं भागीदार हो। लोकतंत्रीकरण के इस विचार को धरातल पर उतारने के लिए नीतीश कुमार ने 2005 में एक क्रांतिकारी पहल की। बिहार पंचायतों और शहरी निकायों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण देने वाला पहला राज्य बना। इन संस्थाओं में पिछड़ों तथा दलितों को भी आरक्षण मिला। नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का मौका मिलने से महिलाओं तथा वंचित तबकों का सम्मान बढ़ा, उनकी आवाज बुलंद हुई। इसके उत्साहजनक परिणामों से प्रेरित होकर बाद में कई राज्यों ने इसे अपने यहां लागू किया।

बिहार में पंचायती राज व्यवस्था के तहत विभिन्न जनप्रतिनिधियों के सवा दो लाख से अधिक पद हैं। आरक्षण की नई व्यवस्था के बाद पंचायती राज के तीन चुनाव हो चुके हैं-वर्ष 2006, 2011 और 2016 में। तीनों चुनावों ने गांव-गांव में कितने बड़े पैमाने पर आधी आबादी और अति पिछड़े एवं दलित समुदाय के लोगों को नेतृत्व प्रदान किया है, उसे आंकड़ों के आईने में पढ़ा जा सकता है। आज वे मुखर होकर अपनी आवाज बुलंद करने, राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करने तथा जनमत का निर्माण करने की स्थिति में आ गए हैं।

बदलाव की यह बयार पंचायती राज तक ही सीमित नहीं है। नीतीश कुमार ने प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक के 50 प्रतिशत पदों को भी महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया। सिपाही सहित अन्य सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। जीविका के तहत करीब दस लाख स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है, जिससे सवा करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं। यह विकास की धारा से पिछड़े परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

बदला हुआ परिदृश्य शिक्षण संस्थानों में भी दिख रहा है, जहां प्रोत्साहन मिलने के कारण बालिकाओं और दलित तथा ओबीसी समुदाय के विद्याíथयों की संख्या काफी बढ़ी है। साइकिल योजना, पोशाक योजना, प्रोत्साहन योजना आदि महिला सशक्तीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई हैं। मैटिक परीक्षा में अब छात्र और छात्रओं का अनुपात लगभग बराबर हो चुका है, जो 2005 की मैटिक परीक्षा में 67:33 था। यह बताता है कि नीतीश सरकार के कार्यकाल में किस तरह बालक-बालिकाओं के बीच भेदभाव खत्म हुआ है। अब तक करीब एक करोड़ 20 लाख छात्र-छात्रओं को साइकिल देने वाला बिहार अकेला राज्य है। ये योजनाएं किसी जाति विशेष के लिए लागू नहीं की गई थीं, लेकिन इनका सर्वाधिक लाभ गरीब परिवारों को मिला है। 2005 में बिहार के 12 प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर थे। निश्चित रूप से इनमें ज्यादातर दलित एवं महादलित परिवारों के बच्चे थे। आज ऐसे बच्चों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम रह गई है।

विकास के लाभ के न्यायसंगत बंटवारे के उद्देश्य से नीतीश कुमार ने एक और ऐतिहासिक पहल की। उन्होंने अत्यंत ही सुविचारित तरीके से पिछड़ा वर्ग के भीतर ‘अति पिछड़ा वर्ग’ और दलित समूह के भीतर ‘महादलित’ समूह का निर्माण किया। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भी ईवी चिन्नाया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में ‘आरक्षण के भीतर आरक्षण’ यानी ‘कोटे के भीतर कोटा’ को सही ठहराया है। यानी अब संविधान पीठ को भी महसूस हो रहा है कि देश में सामाजिक न्याय के लिए उठाए गए कदमों का लाभ विभिन्न जाति समूहों को समान रूप से नहीं मिला है।

देश में पहली बार नीतीश कुमार ने ‘महादलित’ के विकास को मिशन का रूप दिया। ‘महादलित विकास मिशन’ के तहत कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन और अधिक-से-अधिक परिवारों तक उनका लाभ पहुंचाने के लिए पंचायतों एवं शहरी निकायों में 10 हजार से अधिक विकास मित्र नियुक्त किए गए हैं। इसी तरह महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोड़ने के लिए करीब 30 हजार तालिमी मरकज एवं टोला सेवक काम कर रहे हैं।

आज यह सर्वमान्य तथ्य है कि नीतीश कुमार ने ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा को धरातल पर उतारा है। पिछले 15 वर्षो में नीतीश सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि बिहार में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर समाज में किसी तरह का तनाव या टकराव नहीं हो। आज जरूरत है सामाजिक सद्भाव और न्याय के साथ विकास की इस राजनीति को दूसरे चरण में ले जाने की। निश्चित रूप से यह काम नीतीश कुमार जैसे दूरदर्शी, दृढ़ संकल्पित एवं ईमानदार नेतृत्व में ही संभव है। नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में ‘न्याय के साथ विकास’ की इतनी लंबी लकीर खींच दी है, जिसे अवसरवादी दलों के बेमेल गठबंधन से मात नहीं दिया जा सकता।

नीतीश कुमार ने ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा को धरातल पर उतारा है। पिछले 15 वर्षो में उनकी सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि बिहार में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर समाज में किसी तरह का तनाव या टकराव न हो। आज जरूरत है सामाजिक सद्भाव और न्याय के साथ विकास की इस राजनीति को दूसरे चरण में ले जाने की। निश्चित रूप से यह काम नीतीश जैसे दूरदर्शी, दृढ़ संकल्पित एवं ईमानदार नेतृत्व में ही संभव है।

[राष्ट्रीय महासचिव, जदयू]


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