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Bihar Assembly Election 2020: चुनावी बयार वही, मुद्दों के रंग बदलने लगे

चुनावी सभाओं में तालियां इस बार भी बज रही हैं पर मिजाज बदला हुआ है। पिछले कई चुनावों में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जात-संप्रदाय के नाम पर ये तालियां खूब बटोरी जाती रही हैं इस बार भाव बदला-बदला है। चाहे कोई भी पार्टी हो वह भी अच्छी तरह समझ रही है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 07:06 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 07:06 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: चुनावी बयार वही, मुद्दों के रंग बदलने लगे
नीतीश कुमार, तेजस्‍वी यादव और चिराग पासवान।

पटना, अश्विनी। राजनीतिक दलों के एजेंडे में गांव-कस्बों की नई सूरत गढ़ने से लेकर रोजगार और तकनीक तक की बातें। सियासत बदल रही है या बिहार। इस बार पिछले चुनावों से बहुत कुछ अलग है। सियासत ने खुद को बदला है या नई पीढ़ी की नई सोच ने पिच बदल दी है।

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तालियां तो बज रहीं मगर मिजाज बदल गए हैं

चुनावी सभाओं में तालियां इस बार भी बज रही हैं, पर मिजाज बदला हुआ है। पिछले कई चुनावों में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जात-संप्रदाय के नाम पर ये तालियां खूब बटोरी जाती रही हैं, इस बार भाव बदला-बदला है। चाहे कोई भी पार्टी हो, वह भी इसे अच्छी तरह समझ रही है। ऐसा भी नहीं कि कुनबे के नाम पर चुनावी समीकरण पूरी तरह खारिज हैं। ये समीकरण अभी भी गढ़े जा रहे हैं, लेकिन अब सिर्फ यह समीकरण भर किसी की भी जीत की गारंटी नहीं। यही कारण है कि सियासत की पिच पर इस बार 'पारंपरिक' मुद्दों की गेंद नहीं। यानी, कुनबाई रंग।

रोजगार से लेकर विकास तक के मुद्दे जमकर उछल रहे

पिछले एक पखवारे से रोजगार से लेकर विकास तक के मुद्दे जमकर उछल रहे हैं। सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं के साथ मैदान में है तो विपक्ष के पास भी यही मुद्दे। एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार पंद्रह साल में बदले बिहार की बात कर रहे हैं। गांव-गांव सड़क से लेकर बिजली और जल की बात कर रहे हैं। लड़कियों की शिक्षा से लेकर तकनीक तक की बात। वहीं, महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव के एजेंडे में भी रोजगार सबसे उपर है।

शिक्षा और रोजगार सभी के एजेंडे में प्रमुख

एनडीए और महागठबंधन से अलग एकला चल रहे लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान का मुद्दा भी यही है। रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा हों या जाप अध्यक्ष पप्पू यादव, शिक्षा और रोजगार सभी के एजेंडे में प्रमुखता से है।

मुद्दों में सिर्फ बीते पांच साल नहीं है, बल्कि तीस साल हैं

चुनाव की खास बात यह कि मुद्दों में सिर्फ बीते पांच साल नहीं है, बल्कि तीस साल हैं। नीतीश एक-एक कर पंद्रह साल की उपलब्धियां गिना रहे तो उससे पंद्रह साल पहले के बिहार की याद दिलाते हुए सवाल भी उठा रहे हैं। वहीं, तेजस्वी यह बार-बार कह रहे कि वे सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं और यही उनकी राजनीतिक विचारधारा है। उनके लिए युवाओं को रोजगार अहम मुद्दा है। वे अपनी नई सोच के साथ आगे बढऩे की कोशिश करते दिख रहे।

सियासत की धारा बदल रही

यह और बात है कि इन मुद्दों पर छिड़ी बहस में साधन-संसाधन से लेकर अतीत-वर्तमान सब कुछ केंद्र में है, पर यह सभी के लिए अहम विषय बन चुका है। हर किसी को इसका जवाब देना पड़ रहा है। बिहार के चुनाव में यह थोड़ा नयापन दिख रहा। यह उसे पिछले चुनावों से अलग करता भी दिख रहा है, जहां आम जन मुद्दों पर बहस करता, उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता और तालियां पीटता दिख रहा है। इसका मतलब यह भी है कि सियासत की धारा बदल रही।


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