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ठाकुर से मिली शिकस्त के बाद पंडित जी ने शिवहर सीट से चुनाव लड़ना छोड़ा

शिवहर। चुनाव के दौरान सूबे के विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम भले ही जातीय गणित और दल -

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 12:27 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 12:27 AM (IST)
ठाकुर से मिली शिकस्त के बाद पंडित जी ने शिवहर सीट से चुनाव लड़ना छोड़ा
ठाकुर से मिली शिकस्त के बाद पंडित जी ने शिवहर सीट से चुनाव लड़ना छोड़ा

शिवहर। चुनाव के दौरान सूबे के विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम भले ही जातीय गणित और दल -गठबंधन के समीकरण के आधार पर सामने आते रहे है। लेकिन शिवहर विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम पर कभी भी जातीय गणित और राजनीतिक समीकरण का प्रभाव नहीं पड़ा है। यहां कि जनता ने जिसे भी अपनाया, भरपुर प्यार दिया। लेकिन, किसी को ठुकराया तो फिर मौका नहीं दिया। शिवहर सीट की सियासत तीन भागों में बंटी। पहली पंडित रघुनाथ के पहले, दूसरा पंडित जी का 27 साल का विधायकी का सफर और तीसरा पंडित जी के बाद का दौर। शिवहर में सर्वाधिक छह जीत का रिकॉर्ड पंडित जी के नाम दर्ज है। इसके बाद चार जीत ठाकुर गिरजानंदन सिंह, दो-दो जीत अजीत कुमार झा और मो. शरफूद्दीन तथा एक-एक जीत चितरंजन सिंह, सत्यनारायण प्रसाद, संजय गुप्ता व ठाकुर रत्नाकर राणा के नाम दर्ज है। वर्ष 1972 से 1990 तक पंडित जी लगातार शिवहर से विधायक चुने जाते रहे। वर्ष 1998 के उपचुनाव में जदयू के ठाकुर रत्नाकर राणा से मिली पहली हार के बाद पंडित जी ने शिवहर से चुनाव लड़ना छोड़ दिया। उन्होंने बेतिया और गोपालगंज को कर्मभूमि बना संसदीय चुनाव लड़ा। जबकि, वर्ष 1998 में उपचुनाव में मिली जीत के बाद से ठाकुर रत्नाकर राणा को दोबारा जीत नसीब नहीं हुई। पांच चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। ठाकुर रत्नाकर राणा ने वर्ष 2000 का चुनाव सपा के टिकट पर, वर्ष 2004 का उपचुनाव, 2005 के फरवरी और अक्टूबर का चुनाव जदयू की टिकट पर और 2015 का चुनाव निर्दलीय लड़ा था। पंडित रघुनाथ झा ने शिवहर सीट से 1972, 1977 व 1980 में कांग्रेस, 1985 में जनता पार्टी, 1990 व 1995 में जनता दल के टिकट पर लगातार जीत दर्ज की। वर्ष 1998 में समता पार्टी की टिकट पर हार मिली। पंडित रघुनाथ झा के पुत्र अजीत कुमार झा ने पहली बार वर्ष 2000 का चुनाव समता पार्टी की टिकट पर लड़ा। लेकिन जनता ने नकार दिया। 2005 के फरवरी और अक्टूबर में अजीत ने राजद प्रत्याशी के रूप में बाजी मारी। हालांकि, 2010 के चुनाव में राजद की टिकट पर तीसरे स्थान पर रहे। पिछले चुनाव में सपा की टिकट पर चौथे स्थान पर रहे। उनके नाम दो जीत और तीन हार है। पूर्व विधायक सत्यनारायण प्रसाद पहली बार मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। वह विधायक रहते हुए ही परलोक सिधार गए। उनके पुत्र संजय गुप्ता राजद की टिकट पर 2004 के उपचुनाव में विधायक चुने गए। वर्ष 2005 के फरवरी में निर्दलीय ही मैदान में उतरे। लेकिन जनता ने नकार दिया। इनके नाम एक जीत और एक हार है। मो. शरफूद्दीन को तीसरे प्रयास में कामयाबी मिली। वह वर्ष 2005 के फरवरी और अक्टूबर में शिवहर सीट से लोजपा की टिकट पर मैदान में उतरे। दोनों बार तीसरे स्थान पर रहे। तीसरी बार 2010 में जदयू की टिकट पर मैदान में उतरे। तीसरे प्रयास में जीत मिली। 2010 में जीत का क्रम बरकरार रखा। हैट्रिक के लिए फिर जदयू से मैदान में है। इनके नाम दो हार और दो जीत है। वर्ष 2015 में हम प्रत्याशी लवली आनंद, 2010 में बसपा प्रत्याशी प्रतिमा देवी, 1995 में बीपीपा प्रत्याशी आनंद मोहन व 1985 में कांग्रेस के भरत प्रसाद सिंह मात्र एकबार मैदान में उतरे। लेकिन किसी को जीत नहीं मिली। वर्ष 1972 में निर्दलीय और वर्ष 1990 में कांग्रेस के टिकट पर ठाकुर दिवाकर मैदान में उतरे। दोनों ही बार हार गए। वर्ष 1967, 1969, 1977 व 1980 में जफीर आलम ने चार बार प्रयास किया। लेकिन जीत नही मिली। वर्ष 1957 व 1967, 1969 व 1977 में ठाकुर गिरजानंदन ने चार जीत दर्ज की। जबकि, 1962 का चुनाव हार गए। 1962 में कांग्रेस के चितरंजन सिंह को जीत मिली। लेकिन 1967 व 1969 व 1977 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा

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