असम में चाय बागान मजदूर तय करेंगे किसके कप में होगी सत्ता, पहले चरण की 38 सीटों पर इनका दबदबा
असम में 47 सीटों पर होने वाले पहले चरण के मतदान में चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की भूमिका अहम होगी। पहले चरण की 47 में से 38 सीटों पर इनका दबदबा है। भाजपा इनका समर्थन बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।
नीलू रंजन, गुवाहाटी। असम में 47 सीटों पर होने वाले पहले चरण के मतदान में चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की भूमिका अहम होगी। 47 में से 38 सीटें चाय बागानों वाले अपर असम में हैं। 2014 तक अपने परंपरागत वोट रहे चाय बागान मजदूरों को फिर से जोड़ने के लिए कांग्रेस ने घोषणा-पत्र में बड़े-बड़े वादे किए हैं, वहीं पिछली बार चाय बागान मजदूर बहुल 38 में से 28 सीटें जीतने वाली भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी असम गण परिषद नए वादे के साथ-साथ पाच साल में किए गए कार्यों के आधार पर उनका समर्थन बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
यह है चाय बागान मजदूरों की अहमियत
असम के चुनाव में चाय बागान मजदूरों की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों चाय बागानों का दौरा कर चुके हैं । प्रियंका चाय की पत्ती तोड़ने के साथ मजदूर के घर में चाय भी पी चुकी हैं और खाना भी खा चुकी हैं। इसके साथ ही कांग्रेस ने मजदूरों का वेतन 167 रुपये प्रति दिन से बढ़ाकर 365 रुपये करने, उनके लिए मुफ्त बिजली और घर के साथ-साथ अलग से चाय मंत्रालय बनाने का वादा भी किया है।
कांग्रेस कर रही बड़े-बड़े वादे
साल 2011 तक चाय बागान के मजदूर कांग्रेस के परंपरागत मतदाता थे जो 2014 की नरेंद्र मोदी लहर में पहली बार भाजपा की तरफ आए। 2016 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में चाय बागान मजदूरों के साथ रिश्ता और प्रगाढ़ हुआ तो भाजपा यहां अधिकांश सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही। जाहिर है कांग्रेस अपने परंपरागत वोट बैंक को हासिल करने के लिए जी-जान से जुटी है और उनके लिए बड़े-बड़े वायदे कर रही है ।
वोट बैंक नहीं खोना चाहती भाजपा
दूसरी ओर भाजपा किसी भी कीमत पर इस वोट बैंक को खोने के लिए तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता चाय मजदूरों के लिए पिछले पाच साल में किए गए काम का हवाला दे रहे हैं। इनमें सड़क, स्कूल, मोबाइल अस्पताल, गैस, घर, शौचालय आदि शामिल हैं। चाय बागान मजदूरों के लिए करीब सात लाख 50 हजार बैंक खाते भी खोले गए, जिनमें बिना किसी कटौती के सीधे वेतन पहुचता है।
भाजपा ने आर्थिक मदद बढ़ाने का किया वादा
इसके अलावा सरकार चाय बागान बागीचार प्रोत्साहन स्कीम के तहत इन बैंक खातों में तीन-तीन हजार रुपये जमा करती है। इस बार भाजपा ने इसे बढ़ाकर 12 हजार रुपये करने का वादा किया है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को अलग से आर्थिक सहायता दी जाती है। भाजपा ने प्रत्येक चाय बागान में एक स्कूल और 10 चाय बागानों पर एक हाई स्कूल शुरू करने का वादा किया है।
वक्त बताएगा किस पर है भरोसा
इसके साथ ही भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद ने चाय बागान मजदूरों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा भी किया है। देखना ये है कि चाय बागान मजदूर भाजपा और कांग्रेस के बीच किसके वादे पर भरोसा करते हैं।
वेतन को लेकर घेर रही कांग्रेस
2016 में भाजपा ने चाय बागान मजदूरों का वेतन 351 रुपये प्रतिदिन करने का वादा किया था लेकिन उसे केवल 167 रुपये ही कर पाई। चुनाव का ऐलान होने के पहले सरकार ने इसे 217 रुपये किया है। चाय बागान मालिकों की याचिका के बाद असम हाई कोर्ट ने इस पर अभी रोक लगा दी है। जाहिर है 365 रुपये वेतन के वादे के साथ कांग्रेस इस पर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है।
इसलिए मैदान में उतरे शिवराज सिंह चौहान
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल कहते हैं कि कांग्रेस वादा भूलने के लिए करती है जबकि भाजपा उन्हें पूरा करती है। कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र पत्र में किए गए वादों के खोखलापन को जनता को सामने रखने के लिए भाजपा ने गुरुवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारा, जिन्होंने विस्तार से बताया कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में कैसी-कैसी घोषणाएं की थी लेकिन सरकार बनने के बाद उन्हें भूल गई।