क्या वसुंधरा राजे को जीत का गौरव दिला पाएगी उनकी तीसरी रथ यात्रा?
सवाल ये है कि क्या तीसरी बार भी वसुंधरा राजे के लिए चारभुजा मंदिर भाग्यशाली साबित होगा? क्या इस बार की गौरव रथ यात्रा सत्ता विरोधी लहर को समाप्त कर पाएगी ?
जयपुर [नरेन्द्र शर्मा]। राजस्थान विधानसभा चुनाव से करीब 4 माह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तीसरी बार राजस्थान में मेवाड़ के प्रमुख धार्मिक स्थल चारभुजा मंदिर से चुनावी रथ यात्रा शुरू की है । शनिवार को चारभुजा मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद "राजस्थान गौरव यात्रा "शुरू हुई ।
सवाल ये है कि क्या तीसरी बार भी वसुंधरा राजे के लिए चारभुजा मंदिर भाग्यशाली साबित होगा? क्या इस बार की गौरव रथ यात्रा सत्ता विरोधी लहर को समाप्त कर पाएगी ? अंतर यह है कि पिछली दोनों यात्राएं वसुंधरा राजे ने विपक्ष में रहते हुए की थी और इस बार मुख्यमंत्री रहते हुए यात्रा कर रही है। वर्ष 2003 की परिवर्तन यात्रा और वर्ष 2013 की सुराज सकंल्प यात्रा ने वसुंधरा राजे को राजस्थान में लोकप्रिय नेता और राजस्थान भाजपा की ब्रांड एंबेसेडर के रूप में स्थापित किया था।
वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे ने परिवर्तन यात्रा शुरू की, तब तक राजस्थान में नारा था कि भाजपा का एक ही सिंह भैरोसिंह। वर्ष 2003 तक राजस्थान में भाजपा को भैरोंसिंह शेखावत का पर्याय माना जाता था। उनके मुकाबले कोई नेता नहीं था ।वसुंधरा राजे उस समय महज झालवाड़ संसदीय क्षेत्र से सांसद थी। भाजपा ने प्रदेश में अपने सबसे लोकप्रिय चेहरे शेखावत के उत्तराधिकारी के रूप में वसुंधरा राजे को चुना।
स्व.भैरोंसिंह शेखावत की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी। उस समय लोगों का यह प्रश्न होता था कि क्या वसुंधरा राजे शेखावत की जगह ले सकती है। लेकिन वर्ष 2003 की परिवर्तन यात्रा के बाद वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा की सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हो गई। इसका परिणाम ये हुआ कि अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा की पहली बार राज्य में पूर्ण बहुमत से सरकार बनी।
भाजपा को 200 में से 120 विधानसभा सीटों पर सफलता मिली।
वसुंधरा राजे ने दूसरी रथ यात्रा वर्ष 2013 में निकाली, जिसे सुराज संकल्प यात्रा का नाम दिया था। उस समय वसुंधरा राजे की बतौर लोकप्रिय नेता की छवि दांव पर थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वसुंधरा राजे की ये यात्रा भी सफल रही। तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार की फ्री दवाई योजना,फ्री जांच योजना,कर्मचारियों को खुश करने सहित सामाजिक सुरक्षा की विभिन्न योजनाओं के अंबार के बावजूद वसुंधरा राजे ने इसे सत्ता विरोधी लहर में बदल दिया।
वर्ष 2013 के चुनाव में भाजपा ने 200 में 163 सीटें जीती और कांग्रेस को आजादी के बाद सबसे कम 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा। हालांकि वसुंधरा राजे के विरोधी इसे नरेन्द्र मोदी लहर का नतीजा मानते है। अब शनिवार से शुरू हुई वसुंधरा राजे की तीसरी यात्रा उनके लिए बड़ी चुनौति है। पहले की दोनों यात्राएं उन्होंने विपक्ष में रहते हुए की थी। इन यात्राओं में उन्होंने एंटीइनकमबेंसी को भुनाया था, इस बार खुद को खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल को खत्म करने की चुनौती है।
शनिवार से शुरू हुई यात्रा में वसुंधरा राजे के सामने सबसे बड़ी चुनौती वही है जो उनकी सबसे बड़ी कला मानी जाती है अर्थात जातियों को साधने की कला। राजपूत की बेटी,जाट की बहू और गुर्जर की समधन वाली कला अब काम आएगी या नहीं यह देखना होगा। 40 दिन की यह यात्रा वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य के लिए भी निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है।