कांग्रेस के नेता राफेल विमान सौदे को लेकर जिस तरह पहले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग के पास गए और फिर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पास उससे इसकी ही पुष्टि होती है कि वे इस मसले को तूल देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। ऐसा शायद इसलिए और है, क्योंकि राफेल सौदे को घोटाला साबित करने के अभियान की अगुआई खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर रहे हैं। वह हर दिन एक नए आरोप के साथ ही सामने नहीं आ रहे, बल्कि कहीं अधिक तीखी और कई बार तो अमर्यादित भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके जवाब में भाजपा भी उनके खिलाफ आक्रामक रवैये का परिचय दे रही है। अगर राफेल सौदे पर आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला लंबा खिंचा तो जुबानी जंग का और तीखा होना तय है।

यदि राहुल गांधी को यह यकीन हो गया है कि राफेल सौदे में सचमुच घोटाला हुआ है तो फिर उनके साथियों को इधर-उधर जाने के बजाय वे तथ्य सबके सामने रखने चाहिए जिनके आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि इस सौदे में गड़बड़ी हुई है। अगर घोटाला हुआ है जैसा कि शोर मचाया जा रहा है तो फिर पैसे का लेन-देन हुआ होगा और वह एक खाते से दूसरे या फिर तीसरे-चौथे खाते में भी गया होगा-ठीक वैसे ही जैसे बोफोर्स तोप सौदे में देखने को मिला था। क्या कांग्रेसी नेताओं के पास ऐसे कोई प्रमाण हैं? अगर हैं तो फिर वे कैग और सीवीसी का दरवाजा खटखटाने में वक्त जाया क्यों कर रहे हैं? आखिर वे घोटाले के कथित सुबूतों के साथ अदालत क्यों नहीं जाते?

क्या प्रधानमंत्री के खिलाफ तीखी भाषा के इस्तेमाल से राहुल गांधी के आरोप प्रमाण में तब्दील हो जाएंगे? अगर राहुल अथवा अन्य विपक्षी नेता यह सोच रहे हैं कि घोटाला होने का शोर मचाते रहने से उनकी बात सही मान ली जाएगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। वैसे भी कांग्रेसी नेता अभी तक यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कि राफेल सौदे में क्या अनियमितता हुई है? वे कभी राफेल विमान ज्यादा कीमत पर खरीदने का आरोप लगाते हैं तो कभी इस पर हैरान-परेशान होते हैं कि राफेल बनाने वाली कंपनी दासौ ने अनिल अंबानी की कंपनी को साझीदार क्यों बना लिया?

बेहतर हो कि वे इस पर हैरान-परेशान होने के बजाय यह बताएं कि इसमें गलत क्या है? वे यह भी बताएं तो और बेहतर कि आखिर उन्हें अनिल अंबानी की कंपनी से इतनी परेशानी क्यों है? नि:संदेह कुछ सवाल मोदी सरकार के सामने भी हैं। सरकार की कोशिश राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते रहने के बजाय इस मसले का पटाक्षेप करने की होनी चाहिए।

राफेल सौदे को लेकर सरकार का सवालों के जवाब देने की मुद्रा में नजर आना कोई प्रभावी रणनीति नहीं। उसकी कोशिश तो उन कारणों का निवारण करना होना चाहिए जिनके चलते राहुल गांधी राफेल सौदे को घोटाला बताने में लगे हुए हैं। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि कांग्रेस राफेल सौदे को राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश में फ्रांस से संबंध खराब होने की भी चिंता नहीं कर रही है।