प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में जो कुछ कहा उससे और खासकर इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि आज के युवा सिस्टम को पसंद करते हैं और वे न केवल उसका पालन करते हैं, बल्कि यदि सिस्टम ढंग से काम न करे तो सवाल भी करते हैं। वास्तव में हम सब भारत की उस युवा पीढ़ी का उभार देख भी सकते हैं जो न केवल नियम-कायदों के हिसाब से चलना पसंद कर रही है, बल्कि यह भी चाह रही है कि अन्य सभी ऐसा करें। किसी भी देश की ऐसी युवा पीढ़ी व्यवस्था को बदलने के साथ ही उस माहौल का निर्माण करने में भी सहायक बनती है,जो पुराने ढर्रे को बदलने के लिए आवश्यक होता है।

विडंबना यह है कि कुछ लोग और खासकर नेताओं का एक वर्ग अभी भी पुराने ढर्रे पर चलना पसंद कर रहा है। यही कारण है कि व्यवस्था में बदलाव और सुधार की कोशिशों का विरोध होते हुए दिखता है। यह विरोध वे लोग करते हैं जो भाई-भतीजावाद, परिवारवाद और अपारदर्शी व्यवस्था के पोषक हैं। इनका बस चले तो वे शायद कोटा-परमिट वाली व्यवस्था को फिर से लागू करने की वकालत करने लगें। सच तो यह है दबे-छिपे स्वरों में यह वकालत होती भी है।

प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि आने वाले दशक को गति देने में वे लोग ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएंगे जिनका जन्म 21वीं सदी में हुआ है। इससे इन्कार नहीं कि बीते वर्षों में व्यवस्था के स्तर पर काफी कुछ बदला है, लेकिन यह भी सही है कि अभी बहुत कुछ बदले जाने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति में सजग और अनुशासनप्रिय युवाओं की एक बड़ी भूमिका रहने वाली है। संभवत: उनकी इसी भूमिका को रेखांकित करने के लिए प्रधानमंत्री ने यह कहा कि देश के युवाओं को अराजकता, अव्यवस्था आदि से चिढ़ है और वे परिवारवाद, जातिवाद को पसंद नहीं करते।

प्रधानमंत्री ने यह बात हाल के दिनों में नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शनों का उल्लेख किए बगैर कही। इसके पीछे उनका मंतव्य कुछ भी हो, न तो इस हिंसा की अनदेखी की जा सकती है और न ही इसकी कि युवाओं को किस तरह भड़काकर सड़कों पर उतारा गया। सबसे खराब बात यह रही कि इस दौरान संसद से पारित कानून को सड़क पर खारिज करने की जिद की गई। इसका सीधा मतलब है कि युवाओं को अराजकता से दूर रहने के साथ ही उन शक्तियों से सतर्क रहने की भी जरूरत है जो उन्हें गुमराह करती हैं। ध्यान रहे कि इसी की जरूरत चंद दिन पहले सेना प्रमुख ने भी जताई थी।