निश्चित रूप से यह सूचना हैरान करने वाली है कि स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा रकम में डेढ़ गुने की वृद्धि दर्ज की गई है। इसका एक कारण तो यह है कि मोदी सरकार लगातार कालेधन पर अंकुश लगाने के दावे करती रही है और दूसरा यह कि बीते तीन सालों में स्विस बैंकों में भारतीयों की ओर से जमा की जाने वाली राशि में गिरावट दर्ज की जा रही थी। इस गिरावट को देखते हुए यही माना जा रहा था कि कालेधन के खिलाफ सरकार की कोशिश रंग ला रही है, लेकिन बीते दिनों स्विस नेशनल बैंक की ओर से जारी इस आंकड़े ने चौंका दिया कि पिछले वर्ष यानी 2017 में भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में जमा धन करीब सात हजार करोड़ रुपये के बराबर पहुंच गया। यह राशि 2016 के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक है।

हालांकि स्विस नेशनल बैंक यह नहीं कहता कि भारतीयों की ओर से जमा रकम कालेधन के रूप में है, फिर भी अधिकतर लोगों ने यही संदेश ग्रहण किया कि हो न हो, यह रकम कालेधन रोधी नियम-कानूनों की अनदेखी करके स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा कराई गई। हो सकता है कि यह सही न हो, क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं कि स्विस बैंकों में जमा की गई रकम भारत के नागरिकों की है या फिर भारतीय मूल के उन लोगों की जो दूसरे देशों में अनिवासी भारतीय अथवा वहां के नागरिकों के रूप में रह रहे हैं। इसी तरह तमाम खाते वैध भी हो सकते हैं।

ध्यान रहे कि एलआरएस यानी लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत एक व्यक्ति को हर साल ढाई लाख डॉलर भारत से बाहर ले जाने की अनुमति मिली हुई है। कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल की मानें तो 40 प्रतिशत से अधिक राशि तो इसी स्कीम के तहत हो सकती है। कुछ इसी तर्ज पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा कि यह मानना सही नहीं होगा कि सारा पैसा टैक्स चोरी का है और उसे चोरी-छिपे बाहर ले जाया गया। इन संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन जब तक पूरा विवरण सामने नहीं आ जाता तब तक संशय तो बना ही रहेगा। यह संशय कई सवालों को भी जन्म देगा। सच तो यह है कि ऐसे सवाल उभर आए हैं और उनके तहत सरकार को घेरा भी जा रहा है। इस सबके बीच राहत की बात यह है कि स्विस बैंकों में भारतीयों की ओर से जमा कराई गई राशि के बारे में पूरी जानकारी मिलने में ज्यादा देर नहीं।

अंतरराष्ट्रीय दबाव और साथ ही भारत के आग्रह पर एक समझौते के तहत स्विट्जरलैंड अगले साल से भारत सरकार को अपने यहां के बैंकों में खुले भारतीयों के खातों की पूरी जानकारी प्रदान करेगा। यदि इस समझौते के बाद भी यह सामने आता है कि कालेधन वाले हतोत्साहित नहीं हुए और वे किसी जतन-जुगाड़ से गुपचुप तरीके से पैसा बाहर भेजने में समर्थ रहे तो फिर सरकार के लिए समस्या बढ़ जाएगी। बेहतर हो कि जब तक स्विट्जरलैंड से वांछित जानकारी नहीं मिलती तब तक सरकार यह देखे-समझे कि स्विस बैंक भारतीयों के पसंदीदा बैंक क्यों बने हुए हैं?