प्रदेश में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देने के दावे तो हर स्तर पर किए जाते हैं, लेकिन ये हकीकत से कोसों दूर नजर आते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस दिशा में प्रयास न किए गए हैं लेकिन जिन लोगों पर सुविधाएं मुहैया करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे कर्तव्य का निर्वहन करने में कोताही बरतें तो सरकारी कर्मचारियों की कार्यसंस्कृति पर सवाल उठना स्वाभाविक है। प्रदेश की दूसरी राजधानी धर्मशाला के आयुर्वेद के क्षेत्र में लोगों को सुविधाएं मुहैया करवाने वाले स्वास्थ्य संस्थान से चिकित्सा अधिकारी और कर्मचारियों का ड्यूटी से नदारद रहना विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है। प्रदेश में आए दिन डॉक्टरों व कर्मचारियों के ड्यूटी से गायब रहने की शिकायतें सामने आती रहती हैं, लेकिन धर्मशाला के आयुर्वेदिक अस्पताल में औचक निरीक्षण के लिए पहुंचे मंत्री ने खुद हकीकत देखी। आम व्यक्ति शिकायत लेकर जाता तो शायद ही कोई कार्रवाई हो पाती, लेकिन अब मंत्री खुद अव्यवस्था से रू-ब-रू हुए तो तस्वीर स्पष्ट हुई। इस तरह लापरवाही करने वाले कर्मचारियों पर सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए, ताकि अन्यों के लिए भी यह नजीर साबित हो।

अगर राजनीतिक तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले धर्मशाला जैसे शहर में इस तरह की घटना हो सकती है तो प्रदेश के दूरदराज के गांवों में क्या स्थिति होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश में ऐसे कई गांव हैं, जहां चिकित्सा संस्थान तो खोल दिए गए हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं दिया जाता है। प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों में भी असुविधाओं की भरमार है। टांडा और आइजीएमसी को छोड़ दें तो अन्य मेडिकल कॉलेजों में सुविधाएं नाममात्र ही हैं। सिर्फ भारतीय चिकित्सा परिषद की टीम के आने पर दिखावे के लिए पदों को भरा जाता है। प्रदेश में वर्तमान में डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के तीन हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। पिछले दिनों विधानसभा के बजट सत्र के दौरान महकमे के मंत्री ने भी इसे स्वीकार किया है। अस्पतालों में डॉक्टरों के रिक्त पदों को भरने के साथ-साथ ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है कि कोई डॉक्टर बिना बताए अस्पताल से नदारद न रहे। इसके लिए सरकारी स्तर पर त्वरित कदम उठाने चाहिए ताकि फिर इस तरह की लापरवाही सामने न आए।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]