पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना झूठ की पराकाष्ठा ही है कि उनके राज्य में कहीं कोई राजनीतिक हिंसा नहीं। चुनाव बाद जिस राजनीतिक हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए और सैकड़ों पलायन करने के लिए बाध्य हुए, उससे सिरे से इन्कार करना देश की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। ममता बनर्जी इस कोशिश में कामयाब नहीं होने वालीं, क्योंकि राजनीतिक हिंसा के कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए हैं। इनमें एक तृणमूल कांग्रेस के गुंडों की ओर से किए गए सामूहिक दुष्कर्म का संगीन मामला है और दूसरा हत्या का।

सामूहिक दुष्कर्म मामले में तो विशेष जांच दल का गठन करने की भी मांग की गई है, क्योंकि ममता की पुलिस राजनीतिक हिंसा की घटनाओं का संज्ञान लेने से ही इन्कार कर रही है। बंगाल पुलिस का ऐसा आचरण शर्मनाक तो है, लेकिन हैरान इसलिए नहीं करता, क्योंकि वह पहले दिन से तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह से व्यवहार कर रही है। पुलिस के ऐसे ही कदाचरण के कारण बंगाल एक अर्से से राजनीतिक हिंसा की चपेट में है। इस राज्य में चुनाव के दौरान और उनके बाद तो राजनीतिक हिंसा देखने को मिली ही, चुनावों के पहले भी राजनीतिक हिंसा की तमाम घटनाएं सामने आईं, जिनमें कई लोग मारे भी गए। वास्तव में तृणमूल कांग्रेस ने वही राजनीतिक संस्कृति अपना ली है, जो एक समय वाम दलों ने अपना रखी थी। अच्छा होगा कि ममता बनर्जी यह स्मरण करें कि वाम दलों का क्या हश्र हुआ? इस बार के विधानसभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली।

यह लज्जाजनक है कि तीसरी बार सत्ता में आईं ममता बनर्जी राजधर्म की खुली अनदेखी करने के साथ पूरी तरह निरंकुश दिख रही हैं। उनके इसी रवैये से भाजपा को यह कहने में आसानी हो रही है कि चुनाव बाद की भीषण राजनीतिक हिंसा उनके शह से ही हो रही है। ममता बनर्जी कुछ भी दावा करें, वह यह नहीं भूल सकतीं कि कुछ समय पहले खुद उन्होंने राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों के स्वजनों के लिए मुआवजे की घोषणा की थी। ममता सरकार के मनमानेपन और अड़ियल रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के लिए यह और आवश्यक हो जाता है कि वह बंगाल की राजनीतिक हिंसा का संज्ञान ले। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि कायदे से उसे अब तक इस संदर्भ में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर लेनी चाहिए थी। बंगाल की राजनीतिक हिंसा के मामले में केंद्र सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने स्तर पर कुछ कदम उठाए, क्योंकि वहां जो कुछ हो रहा है, वह भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के लिए कलंक ही है।