पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा और साथ ही डॉक्टरों की हड़ताल पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट मांगकर अपने सख्त रवैये का ही परिचय दिया है। इसके पहले भी गृह मंत्रालय ने राजनीतिक हिंसा को लेकर ममता सरकार को एडवाइजरी जारी कर कहा था कि राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान दिया जाए और साथ ही लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इस बार उसने एक ओर जहां डॉक्टरों की हड़ताल पर यह पूछा कि इस हड़ताल को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए गए वहीं दूसरी ओर यह विवरण भी मांग लिया कि बीते तीन सालों से जारी राजनीतिक हिंसा के दोषियों को सजा दिलाने के लिए क्या किया गया? ऐसे सवाल इसके बावजूद पूछे जाने चाहिए कि कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है।

यदि किसी राज्य में हालात एक सीमा से अधिक बिगड़ते हैैं तो केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह उन पर न केवल ध्यान दे, बल्कि ऐसे उपाय भी करे जिससे हालात संभलें। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि जब देश के किसी हिस्से में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैैं तो उससे देश की छवि और प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है।

हालांकि गृह मंत्रालय की एडवाइजरी पर ममता सरकार का यही कहना था कि मोदी सरकार उनकी सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही है, लेकिन डॉक्टरों की हड़ताल खत्म कराने के लिए उनकी पहल कहीं न कहीं यह संकेत दे रही है कि गृह मंत्रालय का दबाव रंग ला रहा है। यह रंग लाना भी चाहिए, क्योंकि एक तो मोदी सरकार कहीं अधिक राजनीतिक ताकत के साथ सत्ता में लौटी है और दूसरे गृह मंत्रालय की कमान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हाथ में आने के बाद यह अपेक्षा भी बढ़ी है कि अब चीजें अलग ढंग से काम करेंगी। इसका एक बड़ा कारण अमित शाह की सख्त प्रशासक की छवि है।

अमित शाह वांछित नतीजों पर केंद्रित रहने के लिए जाने जाते हैैं। गृह मंत्रालय संभालने के बाद उन्होंने ऐसे संकेत भी दिए हैैं कि वह उन गतिविधियों को सहन करने वाले नहीं जो मोदी सरकार अथवा देश की छवि पर असर डालने वाली हों। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन्होंने न केवल केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के एक अनावश्यक ट्वीट पर उन्हें झिड़का, बल्कि गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी को भी उनके एक बेजा बयान के लिए फटकारा। उनके ऐसे तेवरों को देखते हुए इस पर आश्चर्य नहीं कि गृह मंत्रालय पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर सख्ती दिखा रहा है।

इसे देखते हुए राज्य सरकारें यह समझें तो बेहतर कि अब गृह मंत्रालय राज्यों के हालात पर कहीं अधिक गहन निगाह रखेगा। यह समय की मांग भी है, क्योंकि यह स्वीकार्य नहीं कि सैकड़ों लोगों की भीड़ किसी अस्पताल में धावा बोलकर डॉक्टरों को पीट-पीट कर अधमरा कर दे और फिर भी राज्य सरकार हिंसक तत्वों के खिलाफ कुछ न करे। ममता सरकार ने यही किया। राजनीतिक हिंसा पर भी उसका रवैया मनमानी वाला है। ऐसे हालात में यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि गृह मंत्रालय सचेत और सक्रिय दिखे।

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