एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी समायोजित सकल राजस्व की देनदारी के मामले में दो प्रमुख दूरसंचार कंपनियां जिस संकट से दो-चार हैं उसके लिए वे खुद भी जिम्मेदार हैं। दूरसंचार कंपनियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई खामी इसलिए नहीं निकाल सकतीं, क्योंकि उसने तो वही फैसला दिया जो विधि सम्मत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस संकट से निजी दूरसंचार कंपनियां ग्रस्त हैं उससे ही सरकारी क्षेत्र की भी कंपनियां ग्रस्त हैं। इनमें से कुछ गैर-दूरसंचार क्षेत्र की भी कंपनियां हैं। दूरसंचार कंपनियों के संकट के लिए एक हद तक नियामक संस्था और सरकारी नौकरशाही भी जिम्मेदार है।

क्या यह बेहतर नहीं होता कि दूरसंचार विभाग और दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई समय रहते हस्तक्षेप करते और इस विवाद को सुलझाते कि राजस्व आकलन का उचित तरीका क्या होना चाहिए? यह आश्चर्यजनक है कि एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी दोनों में से किसी ने भी यह नहीं समझा कि कंपनियों के राजस्व आकलन के तौर-तरीकों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। यह मामला कहीं न कहीं यही बताता है कि यदि समय पर चेतने और उपयुक्त कदम उठाने से इन्कार किया जाता है तो गंभीर संकट से ही दो-चार होना पड़ता है।

यह कम अजीब नहीं कि राजस्व आकलन का सवाल अनसुलझा होने के बाद भी दूरसंचार कंपनियां आपसी प्रतिस्पर्धा में बुरी तरह उलझीं। ज्यादा से ज्यादा उपभोक्ता बनाने की उनकी होड़ में ऐसी स्थिति तो बनी कि भारत में मोबाइल सेवाएं दुनिया भर से सस्ती हो गईं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनकी गुणवत्ता का स्तर संतोषजनक नहीं हो सका। प्रतिस्पर्धा की ऐसी होड़ का कोई मतलब नहीं कि कंपनियां सेवाओं की गुणवत्ता के साथ ही अपने आर्थिक भविष्य की भी अनदेखी कर दें। फिलहाल यह कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के बकाया राजस्व चुकाने के फैसले के बाद भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया अपनी देनदारी किस तरह चुकाती हैं।

चूंकि वोडाफोन-आइडिया पहले से ही गहरे संकट में है इसलिए उसके बंद होने की भी नौबत आ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो उसे कर्ज देने वाले बैंक भी संकट में आ सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसी भी स्थिति आ सकती है कि देश के दूरसंचार क्षेत्र में दो ही कंपनियां रह जाएं। इस स्थिति में प्रतिस्पर्धा का अभाव देखने को मिल सकता है। जो भी हो, एक ऐसे समय जब दुनिया 5-जी सेवाओं की ओर तेजी से कदम बढ़ा रही हैं तब अपने देश में दूरसंचार क्षेत्र का संकट से घिरना कोई शुभ संकेत नहीं। बेहतर हो कि सरकार और नियामक संस्था के साथ ही दूरसंचार कंपनियां जरूरी सबक सीखने में और देरी न करें।