इस आम धारणा के गलत साबित होने के बाद आम लोगों और साथ ही राज्य सरकारों को चेत जाना चाहिए कि राजमार्गों पर अधिक दुर्घटनाएं एवं जन हानि होती है। यह अच्छा हुआ कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मार्ग दुर्घटनाओं को लेकर एक नई तस्वीर पेश की और यह स्पष्ट किया कि राजमार्गों से अधिक हादसे भीतरी सड़कों पर होते हैं, लेकिन केवल हकीकत बयान करना ही पर्याप्त नहीं। इस मंत्रालय को राज्य सरकारों को साथ लेकर ऐसे उपायों के अमल पर जोर देना चाहिए जो सड़क हादसों को कम कर सकें।

नि:संदेह जरूरत इसकी भी है कि राज्य सरकारें, उनकी यातायात पुलिस और परिवहन विभाग भी यह समझें कि सड़क हादसों पर सख्ती से लगाम लगाने की जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि आम लोग भी सड़क पर चलने और साथ ही वाहन चलाने में सतर्कता का परिचय दें। अभी तो सड़कों पर एक किस्म की अराजकता ही अधिक नजर आती है। समस्या केवल यह नहीं कि यातायात नियमों के पालन के प्रति लापरवाही का परिचय दिया जाता है, बल्कि यह भी है कि उनका उल्लंघन करने का उतावलापन सा दिखाया जाता है। कई बार तो लोग वहां भी यातायात नियमों की अनदेखी करते हैं जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। यही कारण है कि सड़क हादसों में मरने और घायल होने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत करीब-करीब शीर्ष पर है।

यह गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए कि मार्ग दुर्घटनाओं का भयावह सिलसिला थम क्यों नहीं रहा है? राजमार्गों से अधिक सड़क हादसे भीतरी सड़कों पर होना तो यही बताता है कि अपेक्षाकृत धीमी रफ्तार वाला यातायात भी जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसा इसीलिए हो रहा है, क्योंकि सुरक्षित आवागमन को लेकर न तो शासन-प्रशासन सजग है और न ही वाहनों का इस्तेमाल करने वाले।

एक आंकड़े के अनुसार 2017 में मार्ग दुर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोग मारे गए। यह हर दृष्टि से एक भयावह आंकड़ा है। इस आंकड़े को इसलिए गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि सड़क दुर्घटनाओं में अपेक्षाकृत युवा और अपने घर-परिवार के कमाऊ सदस्य मारे जाते हैं। जब ऐसे लोग असमय काल का शिकार बनते हैं तब उनके परिवार के साथ समाज की भी क्षति होती है।

समाज की क्षति राष्ट्र की क्षति है। यदि सुगम-सुरक्षित यातायात के लिए जवाबदेह विभाग अपनी जिम्मेदारी का परिचय दें और आम लोग एक नागरिक के तौर पर अपने सहज-सामान्य बुनियादी दायित्व का निर्वहन करें तो इस राष्ट्रीय क्षति को आसानी से कम किया जा सकता है। इसे हर हाल में कम किया भी जाना चाहिए, क्योंकि बढ़ती मार्ग दुर्घटनाएं एक ओर जहां मानवीय क्षति के आंकड़े को भयावह स्तर पर ले जा रही हैं वहीं दूसरी ओर दुनिया में भारत की छवि का निर्माण नहीं कर रही हैं।

यह राहतकारी है कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने चार राज्यों के परिवहन आयुक्तों की एक समिति बनाकर उससे दुर्घटना में घायल लोगों को त्वरित चिकित्सीय सहायता पहुंचाने के उपाय सुझाने को कहा है। बेहतर होगा कि ऐसे उपाय भी प्राथमिकता के आधार पर तलाशे जाएं जिससे दुर्घटनाओं की रफ्तार थम सके।