ओमिक्रोन के संक्रमण से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या एक हजार के करीब पहुंचने के साथ ही जिस तरह एक दिन में कोरोना वायरस से ग्रस्त संक्रमित लोगों की संख्या दस हजार पार कर गई, उससे ऐसा लगता है कि तीसरी लहर आने ही वाली है। इसका अंदेशा इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में साप्ताहिक संक्रमण दर दस प्रतिशत से अधिक पहुंच गई है और ओमिक्रोन का संक्रमण भी तेजी से बढ़ रहा है। इसे देखते हुए किस्म-किस्म के प्रतिबंधों का सिलसिला कायम होना स्वाभाविक है।

कई राज्यों की ओर से संक्रमण से बचने के लिए रात के कफ्र्यू के साथ अन्य प्रतिबंध भी लगाए जा रहे हैं। यह समझ आता है कि संक्रमण बेलगाम होने की स्थिति में राज्यों को न चाहते हुए भी प्रतिबंधों का सहारा लेना पड़ेगा, लेकिन यह नहीं होना चाहिए कि जिस राज्य को जो समझ आए, वह वैसे ही फैसले करता नजर आए। जहां कुछ राज्यों ने सार्वजनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाने और स्कूल-कालेज बंद करने का काम किया है, वहीं बंगाल सरकार ने ब्रिटेन से कोलकाता आने वाली सभी उड़ानों को निलंबित करने का फैसला ले लिया। इस तरह के फैसले आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर विपरीत असर डालने वाले साबित होंगे। यह समझा जाना चाहिए कि जितनी जरूरत संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करने की है, उतनी ही इसकी भी कि ऐसे कदमों से आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर न्यूनतम असर पड़े।

राज्य सरकारों और उनके प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोग संक्रमण से बचे रहने के उपायों पर अमल करें। खुद लोगों को भी इसके लिए सचेत होना होगा। यह ठीक नहीं कि न तो मास्क का अपेक्षित इस्तेमाल हो रहा है और न ही सार्वजनिक स्थलों में शारीरिक दूरी के नियम का पालन हो रहा है। राज्यों को यह सब सुनिश्चित करने के साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि कोरोना की जांच तेज करने, टीकाकरण की गति एवं कवरेज बढ़ाने और साथ ही स्वास्थ्य तंत्र को सुदृढ़ करने की भी जरूरत है।

एक ऐसे समय जब कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं, तब निर्वाचन आयोग की ओर से यह कहा जा रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव समय पर होंगे। उसके अनुसार सभी दलों ने समय पर चुनाव कराने को लेकर हामी भरी है। प्रश्न यह है कि यदि कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए रैलियां और चुनाव हो सकते हैं तो फिर इसी प्रोटोकाल के साथ आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को क्यों नहीं जारी रखा जा सकता? बेहतर होगा केंद्र सरकार यह देखे कि राज्य सरकारें सतर्कता बरतने के नाम पर हड़बड़ी का परिचय न दें।