जम्मू-कश्मीर को भेदभाव भरे अनुच्छेद 370 से मुक्त हुए एक माह होने जा रहे हैैं। इस दौरान वहां और खासकर घाटी में हिंसा की कोई बड़ी वारदात न होना उल्लेखनीय है, लेकिन यह भी साफ है कि यह कड़ी चौकसी का नतीजा है। नि:संदेह चौकसी आगे भी बरतनी पड़ेगी, क्योंकि पाकिस्तान इस फिराक में है कि कश्मीर में किसी तरह हिंसा और अराजकता का माहौल कायम हो। बावजूद इसके यह भी आवश्यक है कि कश्मीर में लगी पाबंदियों को धीरे-धीरे उठाया जाए। ऐसा करते हुए वहां के लोगों को यह संदेश भी देना होगा कि अनुच्छेद 370 अब एक इतिहास है।

यह अच्छा हुआ कि गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली आए कश्मीर के ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल को यह भरोसा दिया कि उन्हें पुलिस सुरक्षा के साथ ही दो लाख लाख रुपये का बीमा कवरेज भी मिलेगा। इससे भी महत्वपूर्ण उनका यह आश्वासन है कि अगले 15-20 दिनों में जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन सेवाएं बहाल कर दी जाएंगी। ऐसा करने के दौरान यह भी सुनिश्चित करना होगा कि मोबाइल सेवाओं और इंटरनेट का दुरुपयोग न होने पाए। इसमें सफलता तभी मिलेगी जब आम कश्मीरी शांति व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग देंगे और अराजक तत्वों को हतोत्साहित करने में मददगार भी बनेंगे। इसमें एक बड़ी भूमिका कश्मीर के नेताओं की भी होगी। उन्हें इस सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना होगा कि समय चक्र को पीछे नहीं ले जाया जा सकता।

इसमें दोराय नहीं कि कश्मीर के हालात बिगाड़ने में पाकिस्तान का हाथ रहा है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि कश्मीर के नेताओं ने भी लोगों को बरगलाने का काम किया है। कायदे से कश्मीर में अब एक नया राजनीतिक नेतृत्व सामने आना चाहिए जो कश्मीरियत को भारतीयता का पर्याय बना सके और जो घाटी के लोगों को यह बुनियादी बात समझा सके कि उनका हित भारतीयता के रंग में रंगने में है, न कि उस पाकिस्तान की ओर देखने में जो दुनिया भर में बदनाम है। इस सबके साथ ही यह भी वक्त की जरूरत है कि घाटी के उन लोगों और खासकर दलितों, जनजातियों की समस्याओं को सामने लाया जाए जो अनुच्छेद 370 के चलते उपेक्षा का शिकार हो रहे थे।

कश्मीर में लगी पाबंदियां उठाते हुए वहां के माहौल को शांत बनाए रखने में कामयाबी तभी मिलेगी जब दुष्प्रचार करने वालों पर भी लगाम लगाई जाएगी। चूंकि कश्मीर को लेकर बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार राष्ट्रीय और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है इसलिए कहीं अधिक सतर्क और सक्रिय रहने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति करके ही कूटनीतिक प्रयासों को मजबूती दी जा सकती है।