नई दिल्‍ली, जेएनएन। यह महज दुर्योग नहीं कि जब पाकिस्तान का सिंध प्रांत फौज के दमन से कराह रहा है, तब उसी समय जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के उस हमले को काले दिन के रूप में याद किया जा रहा है, जो अक्टूबर 1947 में किया गया और जिसकी तबाही के निशान अभी भी मिट नहीं सके हैं। पाकिस्तानी सेना किस तरह भारत और अफगानिस्तान के लिए सिरदर्द बनने के साथ खुद अपने देश के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है, इसकी गवाही सिंध के साथ-साथ बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत भी दे रहा है।

पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर और खासकर गिलगिट-बाल्टिस्तान भी पाकिस्तानी सेना के दमन की कहानी कह रहा है। पाकिस्तानी सेना अपनी मनमानी इसीलिए कर पा रही है, क्योंकि इमरान खान सरकार उसकी कठपुतली के तौर पर काम करना पसंद कर रही है। वह पाकिस्तानी जनरलों की रबर स्टैंप से अधिक कुछ नहीं रह गई है, इसे बयान कर रहे हैं सिंध के विस्फोटक हालात। पाकिस्तानी सेना ने विपक्षी नेताओं का दमन करने के मकसद से सिंध प्रांत के पुलिस प्रमुख का अपहरण करके अपनी उसी निरंकुशता की याद दिलाई, जो उसने पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में दिखाई थी। चूंकि इसके नतीजे अच्छे नहीं होने वाले इसलिए भारत को सतर्क रहना होगा।

वैसे तो पाकिस्तान की कोई भी लोकतांत्रिक सरकार आतंकियों को पालने वाली अपनी भ्रष्ट सेना के वर्चस्व से बाहर नहीं निकल सकी, लेकिन शायद इमरान सरकार सबसे कमजोर और नाकारा है। चूंकि उसे सेना ने ही छल-कपट से सत्ता में आसीन किया है इसलिए वह उसके आगे भीगी बिल्ली बनी हुई है। आंतरिक अशांति से घिरे पाकिस्तान के हालात ऐसे हैं कि वहां कुछ भी अनर्थ हो सकता है। लोग जितना इमरान सरकार से खफा हैं, उतना ही सेना से भी। हालांकि पाकिस्तान बदहाल और बदहवास है, लेकिन उसके सुधरने के कोई आसार नहीं। वह अपने लोगों के साथ-साथ विश्व समुदाय की आंखों में धूल झोंकने का ही काम कर रहा है।

पाकिस्तान यह तो चाह रहा है कि वह एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आ जाए, लेकिन इसके लिए जरूरी कदम उठाने के बजाय दुनिया को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। यह ठीक है कि चीन और तुर्की जैसे देशों को छोड़कर शेष विश्व पाकिस्तान की चालबाजी को भांप रहा है, लेकिन भारत इतने से संतुष्ट नहीं हो सकता कि वह एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना रहेगा। भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि यह वैश्विक संस्था पाकिस्तान को दंडित करने के बजाय उसे मोहलत देने का काम कर रही है। हैरानी नहीं कि इसी कारण वह सही रास्ते पर चलने से इन्कार कर रहा हो।