आखिरकार केंद्र सरकार ने यह घोषणा कर दी कि एक अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोग कोविड-19 रोधी टीका लगवा सकते हैं। अच्छा होता कि यह घोषणा थोड़ा और पहले की जाती, खासकर तभी, जब यह सामने आया था कि टीकाकरण केंद्रों में पर्याप्त संख्या में लोगों के न पहुंच पाने के कारण टीके खराब हो जा रहे हैं। कुछ राज्यों में तो टीका खराब होने की दर 10 प्रतिशत से भी अधिक है। इसे देखते हुए बेहतर तो यह होता कि 45 वर्ष की आयु सीमा को और कम किया जाता, क्योंकि भारत एक युवा आबादी वाला देश है। हालांकि किशोरवय में कोरोना संक्रमण की दर काफी कम है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि 45 वर्ष से कम आयु वालों के लिए कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा नहीं है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि युवा आबादी ही काम-धंधे के सिलसिले में घरों से ज्यादा बाहर निकलती है। उचित यह होगा कि इसकी संभावनाएं टटोली जाएं कि क्या सभी आयु वर्ग के लोगों को टीका लगवाने की सुविधा दी जा सकती है? ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि टीकाकरण की रफ्तार अभी धीमी ही है। अब जब प्रतिदिन 30 लाख से अधिक टीका लगाने का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है, तब फिर कोशिश इसकी होनी चाहिए कि जल्द ही यह लक्ष्य 40 लाख और फिर 50 लाख के आंकड़े को पार करे, क्योंकि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और सभी वांछित लोगों के टीकाकरण में लंबा समय लग सकता है।

यदि सभी इच्छुक लोगों को टीका लगवाने की सुविधा दी जा सके तो टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने में सफलता मिल सकती है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि ऐसी सुविधा क्यों नहीं दी जा सकती? टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने के हर संभव जतन इसलिए किए जाने चाहिए, क्योंकि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या फिर तेजी से बढ़ने लगी है। इसके चलते कहीं-कहीं रात का कफ्र्यू या फिर लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गई है। कुछ शहरों में तो स्कूलों को खोलने के फैसले वापस लेने पड़ रहे हैं। यह चिंताजनक है कि इसके बावजूद लोग जरूरी सावधानी नहीं बरत रहे हैं। चिंता बढ़ाने का काम कोरोना वायरस के वे बदले हुए रूप भी कर रहे हैं, जो ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील आदि में पनपे और जिनसे ग्रस्त मरीज भारत में भी मिलने लगे हैं। इनमें से कुछ के संक्रमण की रफ्तार कहीं तेज है। यदि कोरोना संक्रमण की फिर से बढ़ती रफ्तार पर लगाम नहीं लगी तो इससे उद्योग-धंधों को पहले जैसी स्थिति में लाने में और समय लग सकता है।