नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को संवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इन्कार करते हुए यह उचित ही कहा कि इस कानून को लेकर हो रही हिंसा थमने पर ही मामले पर विचार करना ठीक होगा, लेकिन इसमें संदेह है कि जो तत्व हिंसक गतिविधियों में लिप्त हैं वे अपनी हरकतों से बाज आएंगे।

इसे देखते हुए उचित यही होगा कि सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं की सुनवाई में विलंब न होने दे जो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर की गई हैं। केंद्र सरकार भी ऐसा ही चाह रही है और इसीलिए उसने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह इस कानून के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को अपने यहां स्थानांतरित कर ले। न केवल ऐसा ही होना चाहिए, बल्कि इस कानून की वैधानिकता की परख भी यथाशीघ्र होनी चाहिए। इससे ही विपक्षी राजनीतिक दलों के दुष्प्रचार पर कुछ लगाम लग सकती है।

यह बेहद हैरानी की बात है कि नागरिकता संशोधन कानून पर लोगों को गुमराह करने का काम तब किया जा रहा है जब उसका किसी भी भारतीय नागरिक से कोई लेनादेना ही नहीं है। चूंकि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि फिलहाल नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी तैयार करने की कोई पहल नहीं हो रही है इसलिए उसे लेकर हल्ला मचाने वालों से आम जनता को सावधान रहना चाहिए।

आम जनता को यह भी समझना होगा कि जितना बेतुका कागज नहीं दिखाएंगे का शरारती अभियान है उतना ही नागरिकता कानून का विरोध करते हुए संविधान की दुहाई देना। क्या संविधान यह कहता है कि संसद से पारित कानून को सड़क पर उतरने वाले खारिज कर सकते हैं?

ऐसा तो भीड़ तंत्र में होता है। आखिर संविधान की शपथ लेकर रास्ते जाम करना संविधानसम्मत आचरण कैसे है? वास्तव में आम लोगों को विरोध के इस नए और शातिर तरीके की पहचान करनी होगी जिसके तहत निराधार आरोप उछालकर लोकतंत्र और संविधान को खतरे में बताया जा रहा है। जो यह सब कह कर लोगों को उकसा रहे हैं वे इस सनक से भी ग्रस्त हैं कि केवल उनका ही विचार सत्य है।

इसी कारण वे अपने से असहमत लोगों को लांछित करने में तो लगे ही हैं, उन्हें बोलने तक का मौका देने को भी तैयार नहीं। शायद ऐसे ही हालात देखकर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि देश कठिन दौर से गुजर रहा है, लेकिन उसे यह भान होना चाहिए कि कुछ तत्व ऐसे भी हैं जो यह दलील दे रहे हैं कि किसी कानून का वैधानिक होना ही पर्याप्त नहीं। यह भी एक शरारत ही है।