कानून का राज: दुर्दांत अपराधी विकास दुबे मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग का नए सिरे से किया गठन
सक्षम व्यवस्था का अभाव अव्यवस्था ही पैदा करता है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को उसमें समग्र सुधार के लिए सक्रिय होना चाहिए।
दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के हाथों आठ पुलिस कर्मियों के मारे जाने और फिर पुलिस मुठभेड़ में खुद उसकी मौत के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित जांच आयोग का नए सिरे से गठन कर दिया। अब इस आयोग में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश भी होंगे और वही उसकी अध्यक्षता करेंगे। इस आयोग की ओर से इसकी भी जांच की जाएगी कि आखिर 60 से अधिक आपराधिक मामलों का सामना करने के बाद भी विकास दुबे जमानत हासिल करने में कैसे समर्थ हो गया? यह आयोग किसी भी नतीजे पर पहुंचे, यह किसी से छिपा नहीं कि ऐसे न जाने कितने कुख्यात अपराधी हैं जो विकास दुबे की तरह जमानत पाने या फिर पैरोल हासिल करने में समर्थ रहते हैं। क्या आवश्यकता इसकी नहीं कि उन कारणों की तह तक जाकर उनका निवारण किया जाए जिनके चलते ऐसा होता है? ये कारण अबूझ-अज्ञात नहीं हैं।
सबको पता है कि अपराधी-माफिया तत्व व्यवस्था की खामी का जमकर लाभ उठा रहे हैं। न केवल उनके मामलों की सुनवाई बेहद धीमी गति से होती है, बल्कि उनके खिलाफ गवाह और सुबूत भी मुश्किल से मिलते हैं। उन्हेंं जमानत भी बहुत आसानी से मिल जाती है। जब ऐसा होता है तो वे और अधिक दुस्साहसी हो जाते हैं। ऐसे अपराधी या तो राजनीतिक संरक्षण हासिल कर लेते हैं या फिर खुद ही राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। इससे केवल कानून का मजाक ही नहीं उड़ता, बल्कि राजनीति भी दूषित होती है। सबसे खराब बात यह होती है कि आम लोगों का कानून के राज के प्रति भरोसा डिगता है।
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी पुलिस मुठभेड़ का संज्ञान लिया हो। ऐसे मामलों की गिनती करना कठिन है जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। इसके बावजूद हालात जस के तस हैं और कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि पहले के मुकाबले और खराब ही हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण पुलिस सुधारों से इन्कार भी है। गाजियाबाद में गुंडों द्वारा एक पत्रकार की हत्या यही बताती है कि पुलिस की कार्यशैली से किस तरह अपराधी तत्व बेलगाम हो रहे हैं?
इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि न तो पुलिस सुधारों की दिशा में सही तरह आगे बढ़ा जा रहा है और न ही आपराधिक न्याय तंत्र को सुधारने के मामले में। सुप्रीम कोर्ट इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि पुलिस सुधार संबंधी उसके आदेशों पर अमल नहीं हो सका है और अदालतों में तारीख पर तारीख का सिलसिला कायम है। चूंकि सक्षम व्यवस्था का अभाव अव्यवस्था ही पैदा करता है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को उसमें समग्र सुधार के लिए सक्रिय होना चाहिए।