नेशनल हेल्थ मिशन सहित केंद्र प्रायोजित अन्य योजनाओं के तहत कार्यरत कर्मचारियों की मांगों पर चर्चा करने के लिए सरकार द्वारा तीन सदस्यीय कमेटी गठित करना सही कदम है। नि:संदेह इससे हजारों कर्मचारियों को यह संदेश गया कि राज्य सरकार उनकी मांगों को पूरा करने को लेकर गंभीर है। ये कर्मचारी नियमित करने की मांग को लेकर एक महीने से अधिक समय तक हड़ताल पर रहे। कुछ दिन पूर्व ही सरकार और कर्मचारियों के बीच सह समझौता हुआ था कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार एक कमेटी गठित करेगी। कमेटी को चाहिए कि अब वे कर्मचारियों को विश्वास में लेकर एक निश्चित समय के भीतर उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कदम उठाए। अक्सर देखा जाता है कि सरकार कर्मचारियों की हड़ताल को समाप्त करने के लिए कमेटियां गठित कर देती है।

विडंबना यह है कि कमेटियों की रिपोर्ट पर कोई भी कार्रवाई नहीं होती और कर्मचारी फिर से सड़कों पर उतर आते हैं। विगत वर्ष भी नेशनल हेल्थ मिशन के कर्मचारियों के साथ ऐसा ही हुआ था। एक कमेटी गठित करने के बाद जब उसकी रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की तो कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। सरकारी महिला कर्मचारियों को वेतन सहित छह महीने का मातृत्व अवकाश, वेतन इस साल पांच प्रतिशत के स्थान पर आठ प्रतिशत बढ़ाने और अगले वित्त वर्ष में कुल बीस प्रतिशत वेतन बढ़ाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय से बातचीत करने पर सहमति बनी हुई है। पुलिस वाइव्स वेलफेयर फंड की तर्ज पर नेशनल हेल्थ मिशन के कर्मचारियों के लिए भी ऐसा ही फंड बनाने पर भी दोनों पक्ष राजी थे। अब सरकार को चाहिए कि इन मांगों को पूरा करने के लिए जल्दी ही एक आदेश जारी करे, जिससे कर्मचारी जोश के साथ काम करे। नेशनल हेल्थ मिशन के कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में नियमित डॉक्टरों के पद रिक्त पड़े हुए हैं। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि वे इन कर्मचारियों की मांगों पर चर्चा करने के लिए गठित कमेटी के लिए समयसीमा भी निर्धारित करें।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]