हिंदू महासागर में छोटे-छोटे द्वीपों से मिलकर बने देश मालदीव में विपक्षी दलों के गठबंधन का सत्ता में आना इसलिए राहत की खबर है, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में पराजित हुए अब्दुल्ला यामीन भारतीय हितों की घोर अनदेखी करने के साथ ही तानाशाही तेवर दिखाने में लगे हुए थे। भारत की चिंता का कारण केवल यह नहीं था कि यामीन चीन को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दे रहे थे, बल्कि यह भी था कि वह चरमपंथी तत्वों के प्रति नरमी बरत रहे थे। इसका एक प्रमाण गत दिवस तब मिला जब कुछ लोगों ने एक ब्रिटिश कलाकार द्वारा समुद्र तट पर बनाई गई प्रतिमाओं को इसलिए तोड़ डाला कि इस्लाम में किसी के चित्रण पर रोक है। यह घटना शायद इसलिए घटी, क्योंकि बतौर राष्ट्रपति यामीन भी कलाकृति के तौर पर चर्चित इन प्रतिमाओं को नष्ट करना चाहते थे।

हालांकि नवंबर में राष्ट्रपति पद पर आसीन होने वाले मोहम्मद सोलिह भारत समर्थक माने जाते हैं, लेकिन नई दिल्ली को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि वह कहीं चीन के दबाव अथवा प्रलोभन में न आ जाएं। भारत को केवल इससे खुश नहीं होना चाहिए कि जीत हासिल करने वाले गठबंधन के नेता एवं पूर्व राष्ट्रपति नशीद इस पर बल दे रहे हैं कि मालदीव की नई सरकार को चीन के साथ किए गए समझौतों की समीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि कई देशों में इस तरह की कवायद के बाद वही हुआ जैसा चीन चाहता था।

यदि मालदीव चीन के साथ किए गए समझौतों की समीक्षा इस दृष्टि से नहीं करता कि कहीं वह उसके कर्ज के जाल में तो नहीं फंस जाएगा तो उसे वैसे ही हालात से दो-चार होना पड़ सकता है जिनसे श्रीलंका हुआ। श्रीलंका चीनी कर्ज के जाल में ऐसा फंसा कि उसे अपने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा। चीन भारी-भरकम कर्ज देकर उन देशों को खास तौर पर अपने शिकंजे में लेने के लिए जाना जाता है जिनका सामरिक महत्व है। मालदीव का सामरिक महत्व किसी से छिपा नहीं। चूंकि लक्षद्वीप से मालदीव की दूरी 1200 किलोमीटर के करीब है इसलिए भारत यह नहीं चाहेगा कि चीन वहां अपना मजबूत ठिकाना बना ले।

भारतीय नेतृत्व इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि चीन हिंद महासागर में अपना दखल बढ़ाता दिख रहा है। वह दक्षिण चीन सागर पर तो अपना अधिकार चाह रहा है, लेकिन हिंद महासागर को साझे समुद्र के तौर पर देख रहा है। भले ही चीन यह सफाई देता रहे कि भारत की घेरेबंदी में उसकी दिलचस्पी नहीं, लेकिन पहले श्रीलंका, फिर मालदीव और नेपाल में उसकी सक्रियता के बाद इन देशों की सरकारों ने जिस तरह भारत से दूरी बनानी शुरू की उससे तो यही रेखांकित होता है कि भारतीय हित उसकी प्राथमिकता में नहीं। इसका एक प्रमाण पाकिस्तान में निर्मित हो रहे आर्थिक गलियारे से भी मिलता है। चीन यह जानते हुए भी इस आर्थिक गलियारे को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजारना चाहता है कि यह भू-भाग मूलत: भारत का हिस्सा है। स्पष्ट है कि भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए और सतर्क रहना होगा।