छुट्टी पर भेजे गए सीबीआइ निदेशक के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग की गोपनीय जांच रपट लीक हो जाने पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। उसने यह रपट सीलबंद लिफाफे में इसीलिए मांगी थी ताकि सीबीआइ की और छीछालेदर न हो, लेकिन किसी ने उसे मीडिया के एक खास हिस्से तक पहुंचा दिया। पता नहीं यह कारस्तानी किसने की और इसके पीछे उसका इरादा क्या था, लेकिन नाराज सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह मामले की सुनवाई 29 नवंबर तक के लिए टाली उससे यह उम्मीद ध्वस्त हो गई कि शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप से सीबीआइ की रार जल्द खत्म होगी।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि किसी की दिलचस्पी इसमें है कि सीबीआइ की साख पर कीचड़ उछलता रहे और उसके छींटे सरकार पर भी पड़ते रहें। इसका संकेत इससे भी मिलता है कि दो दिन पहले सीबीआइ के डीआइजी स्तर के एक अधिकारी ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और एक केंद्रीय मंत्री पर जो तमाम सनसनीखेज आरोप लगाए उनका विवरण मीडिया को भी बांट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस हरकत पर भी नाराजगी प्रकट की, लेकिन आखिर केवल नाराज होने से क्या होगा? यह सवाल इसलिए, क्योंकि कल को कोई राफेल सौदे की गोपनीय जानकारी भी इसी तरह सार्वजनिक कर सकता है। पता नहीं उक्त अधिकारी की शिकायत में कितना वजन है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसका तबादला 24 अक्टूबर होता है और उसे 19 नवंबर को यह याद आता है कि उसके साथ अन्याय हो गया है।

अपने तबादले को अन्याय बताकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले सीबीआइ अधिकारियों की संख्या जिस तरह बढ़ रही और वे इस या उस पर जैसे आरोप मढ़ने में लगे हुए हैैं उससे तो यही लगता है कि वे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने के बजाय एक-दूजे अधिकारी की पोल खोलने और उनकी जासूसी करने में ही अपना वक्त जाया कर रहे थे। यह एक तथ्य है कि भ्रष्टाचार के वे सारे मामले करीब-करीब जहां के तहां हैैं जिनकी जांच को लेकर सीबीआइ अधिकारी आपस में उलझे हुए हैैं। आखिर यह कैसे कहा जा सकता है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग सीबीआइ के कामकाज की निगरानी सही तरह कर रहा था? हैरानी नहीं कि 29 नवंबर तक कुछ और अर्जियां सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएं।

कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट नई-पुरानी अर्जियों का निपटारा किस तरह करेगा, लेकिन वह यह काम जितना जल्द करे उतना ही बेहतर, क्योंकि सीबीआइ की तो जगहंसाई हो ही रही है, सरकार की साख पर भी बन आई है। सीबीआइ अफसरों की ओर से उछाले जा रहे कीचड़ के छींटे जिस तरह सरकार के दामन पर पड़ रहे हैैं उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि मोदी सरकार दिल्ली की दलाल संस्कृति पर लगाम लगाने में पूरी तरह कामयाब नहीं रही। यह सामान्य बात नहीं कि एक तरह से उसके अपने ही अधिकारी उसे असहज करने में लगे हुए हैैं। समस्या केवल यह नहीं है कि सीबीआइ के शातिर अफसर अपना खेल खेलने में कामयाब हैैं, बल्कि यह भी है कि सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं दिख रही है।