अफगानिस्तान के प्रमुख शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए भीषण आतंकी हमले में करीब 20 लोगों की मौत पर भारत सरकार ने उचित ही चिंता प्रकट की, लेकिन यह भी साफ है कि केवल इतने भर से बात बनने वाली नहीं है। इस हमले के बाद भारत सरकार को कहीं अधिक सक्रियता दिखाने की जरूरत है, क्योंकि जलालाबाद और आसपास के इलाके में रह रहे बचे-खुचे सिख अब खुद को सुरक्षित नहीं मान रहे हैैं। अगर वे पलायन के लिए विवश होते हैैं तो फिर अफगानिस्तान के दूसरे हिस्सों में रहने वाले रहे सिख और अन्य अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हो सकते हैैं।

यह चिंता उन्हें भी अफगानिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर कर सकती है। अफगानिस्तान में रह रहे सिखों और हिंदुओं के साथ अन्य अल्पसंख्यकों की जिंदगी कितनी जोखिम भरी है, यह इससे समझा जा सकता है कि करीब दो दशक पहले उनकी संख्या एक लाख से अधिक थी, लेकिन आज वे बमुश्किल दो-चार हजार ही बचे हैैं।

अतीत में तालिबान की बर्बरता का सामना कर चुके अफगानिस्तान के सिखों और हिंदुओं पर ताजा हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट यानी आइएस नामक संगठन ने ली है, लेकिन इस बारे में कुछ कहना कठिन है कि यह किसकी हरकत है? हैरत नहीं कि आइएस के नाम का उल्लेख केवल सनसनी पैदा करने अथवा प्रचार पाने के लिए किया गया हो और यह काम अंजाम दिया हो किसी तालिबानी गुट ने। इसकी आशंका इसलिए भी है, क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत अन्य अनेक देशों में सक्रिय किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों में खुद को आइएस से जुड़ा हुआ बताने का सिलसिला तेज हो गया है।

जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को आत्मघाती हमले का शिकार बनाने का काम चाहे जिस आतंकी समूह ने किया हो, यह साफ है कि उसका मकसद अफगानिस्तान सरकार के साथ-साथ भारत सरकार को भी कोई संदेश देना था। कहीं इस आतंकी गुट ने सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाने का काम पाकिस्तान के इशारे पर तो नहीं किया? यह सवाल इसलिए, क्योंकि अफगानिस्तान के उत्थान में भारत के हाथ बंटाने से यदि किसी को परेशानी है तो वह पाकिस्तान ही है।

पाकिस्तान को अफगानिस्तान में भारत की सक्रियता इसलिए रास नहीं आ रही, क्योंकि वह काबुल में अपनी कठपुतली सरकार चाहता है और उसे लगता है कि भारत इसमें बाधक है। पाकिस्तान की इस सोच के पीछे एक बड़ी वजह अफगानिस्तान को अपनी जागीर के तौर पर देखना है। यदि पाकिस्तान की पहली सनक भारत को नीचा दिखाना है तो दूसरी सनक अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में देखना। इसी कारण वह तालिबान सरीखे खूंखार तत्वों को अपना सहयोग, समर्थन और संरक्षण दे रहा है।

चूंकि जलालाबाद हमले में मारे गए सिख और हिंदू अफगानिस्तान के राष्ट्रपति से मिलने जा रहे थे इसलिए उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोषी बचने न पाएं। नि:संदेह यह भी अपेक्षित है कि अमेरिका और साथ ही अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर चिंतित अन्य देश भी जलालाबाद की आतंकी घटना का संज्ञान लें। इन सभी देशों को यह भी देखना चाहिए कि कहीं पाकिस्तान आतंक का नए सिरे निर्यात तो नहीं कर रहा है?