एक अर्से से रह-रह कर यही सूचना सामने आना ठीक नहीं कि सेना के तीनों अंगों में उतने अफसर नहीं जितने होने चाहिए। ताजा जानकारी के अनुसार रक्षा मंत्रालय के तमाम प्रयासों के बाद भी सेना के तीनों अंग अफसरों की कमी का सामना कर रहे हैैं। वायु सेना और नौै सेना के मुकाबले थल सेना में अफसरों के कहीं अधिक पद रिक्त हैैं। यह सामान्य बात नहीं कि रक्षा मंत्रालय बार-बार यह विवरण देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ले कि सेना के विभिन्न अंगों में अफसरों के इतने-इतने पद खाली हैैं।

चंद माह पहले खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह जानकारी दी थी कि तीनों सशस्त्र बल करीब 52 हजार कर्मियों की कमी से दो-चार हैैं। यह सही है कि रक्षा मंत्रालय ने सैन्य अफसरों और साथ ही सैनिकों की कमी दूर करने के प्रयास किए हैैं, लेकिन समस्या बरकरार रहने से यह भी साफ है कि प्रयासों में कहीं कोई कमी रह गई। सैन्य अफसरों की कमी का एक कारण यह बताया जाता है कि बीते कुछ समय से सेना में अफसर बनकर देश की सेवा करने लायक युवा दूसरे क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैैं।

युवाओं के लिए ये दूसरे क्षेत्र आकर्षक इसलिए हुए हैैं, क्योंकि उनमें वेतन के साथ सेवा शर्तें बेहतर हुई हैैं। यह स्वाभाविक है कि जब सेना की जरूरत के लायक सक्षम युवा दूसरे क्षेत्रों को बेहतर पाएंगे तो वे उसी ओर उन्मुख होंगे। इस स्थिति को तभी बदला जा सकता है जब सैन्य सेवाओं की सेवा शर्तें अन्य क्षेत्रों से बेहतर और युवाओें की रुचि के अनुरूप हों। आखिर ऐसा करने में क्या कठिनाई है? कम से कम इस काम में तो धन की कमी आड़े नहीं आने देनी चाहिए, क्योंकि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है।

रक्षा मंत्रालय के नीति-नियंताओं को इससे अवगत होना चाहिए कि समय के साथ सामाजिक संरचना बदली है। एक समय किसी इलाके और साथ ही परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सैन्य सेवाओं मेंं जाते थे। बदलते वक्त के साथ यह परंपरा शिथिल पड़ी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि देश में ऐसे युवाओं की कमी है जो सेना की कसौटी पर खरे उतर सकें। दरअसल जरूरत इसकी है कि रक्षा मंत्रालय का प्रचार तंत्र उन तक पहुंचे। इसी के साथ चयन प्रक्रिया में भी यथोचित परिवर्तन करने पर विचार करना चाहिए।

ध्यान रहे आज के इस तकनीकी युग में शारीरिक सामर्थ्य के साथ बुद्धिबल की महत्ता बढ़ गई है। भविष्य में युद्ध तकनीक की मदद से अधिक लड़े जाएंगे। यह बदलते वक्त की मांग है कि रक्षा मंत्रालय अपनी जरूरत की तलाश भिन्न पृष्ठभूमि वाले युवाओं के बीच भी करे और इस क्रम में उन मानदंड़ों में यथासंभव बदलाव भी करे जो सेनाओं में भर्ती के लिए एक अर्से से प्रचलित हैैं। इसी के साथ समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसा वातावरण निर्मित करे जिसमें युवा सैन्य अफसर बनकर देश सेवा करने के जज्बे से लैस बने रहें। यह अजीब है कि युवाओं के देश की सेना संख्याबल की कमी का सामना करे। इसका मतलब है कि हम उचित शिक्षा-दीक्षा के अभाव में योग्य युवा नहीं तैयार कर पा रहे हैैं।