सड़क सुरक्षा माह के उद्घाटन कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की ओर से दी गई यह जानकारी हतप्रभ करने वाली है कि देश में प्रतिदिन करीब 415 लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाते हैं। कोई भी अनुमान लगा सकता है कि एक वर्ष में यह संख्या कहां तक पहुंच जाती होगी? इसका कोई मतलब नहीं कि प्रति वर्ष लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में जान से हाथ धो बैठें। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय लोगों के सहयोग से वर्ष 2025 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाना चाहता है, लेकिन यह काम केवल सड़क सुरक्षा माह के माध्यम से लोगों को जागरूक करने भर से होने वाला नहीं है। सड़क हादसों के प्रति लोगों को सजग करने का अपना एक महत्व है, लेकिन बात तो तब बनेगी जब मार्ग दुर्घटनाओं के मूल कारणों का निवारण करने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएंगे। कुशल ड्राइवरों की कमी को देखते हुए ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों में ड्राइवर ट्रेनिंग स्कूल खोलने की तैयारी सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ करना होगा।

सबसे पहले तो सड़कों के किनारे अतिक्रमण को प्राथमिकता के आधार पर दूर करना होगा। यह अतिक्रमण सड़क हादसों का कारण बनता है, खासकर तब और भी जब ऐसे ठिकानों पर बस, ट्रक और अन्य वाहन खड़े कर दिए जाते हैं। यह ठीक नहीं कि ढाबे भारी वाहनों के लिए पार्किंग स्थल बन जाएं। यह भी समझने की जरूरत है कि सड़क किनारे बसे गांवों से होने वाला हर तरह का बेरोक-टोक आवागमन भी जोखिम बढ़ाने का काम करता है। इस स्थिति से हर कोई परिचित है, लेकिन ऐसे उपाय नहीं किए जा रहे, जिससे कम से कम राजमार्ग तो अतिक्रमण और बेतरतीब यातायात से बचे रहें। इसमें संदेह है कि उलटी दिशा में वाहन चलाने, लेन की परवाह न करने और मनचाहे तरीके से ओवरटेक करने जैसी समस्याओं का समाधान केवल जागरूकता अभियान चलाकर किया जा सकता है। इन समस्याओं का समाधान तो तब होगा जब सुगम यातायात के लिए चौकसी बढ़ाई जाएगी और लापरवाही का परिचय देने अथवा जोखिम मोल लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह ठीक नहीं कि जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला कायम रहने के बाद भी राजमार्गों पर सीसीटीवी और पुलिस की प्रभावी उपस्थिति नहीं दिखती। कुछ राज्य सरकारों ने सड़क हादसों को रोकने के लिए राजमार्ग पुलिस की व्यवस्था अवश्य कर रखी है, लेकिन वह या तो संख्याबल के अभाव से जूझती है अथवा अन्य जिम्मेदारियों का निर्वाह करती दिखती है। अच्छा होगा कि राज्य सरकारें यह समझें कि सड़क हादसों को रोकना उनकी भी जिम्मेदारी है।