करीब एक दर्जन नदियों के लिए नदी घाटी प्राधिकरण बनाने की तैयार नदी जल प्रबंधन के प्रति सरकार की गंभीरता को रेखांकित करती है। यह अच्छी बात है कि सरकार ने थोड़ी देर से सही, विभिन्न नदियों के लिए प्राधिकरण बनाए जाने से संबंधित विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया। यदि सब कुछ सही रहा तो संसद के शीतकालीन सत्र में रिवर बेसिन मैनेजमेंट विधेयक पेश हो सकता है, लेकिन कोशिश इसके लिए होनी चाहिए कि इसी सत्र में यह विधेयक पारित भी हो जाए। इसी तरह सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जरूरी केवल यह नहीं है कि प्रमुख नदियों के लिए प्राधिकरण बनें, बल्कि यह है कि वे अपने उद्देश्य की पूर्ति में सहायक भी साबित हों।

नदी घाटी प्राधिकरण इस उद्देश्य से गठित किए जाने हैं कि एक तो नदियों के जल का बेहतर प्रबंधन हो और दूसरे उनके पानी के बंटवारे से संबंधित विवादों को निपटाने में आसानी हो। अपने देश में नदियों के जल बंटवारे से जुड़े विवाद किसी से छिपे नहीं। कई बार वे राज्यों के बीच विवाद का कारण तो बनते ही हैं, वैमनस्य को बढ़ाने का भी काम करते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि नदी जल बंटवारे संबंधी विवाद वर्षों तक अनसुलझे बने रहते हैं।

आम तौर पर ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि राज्य सरकारें नदियों को अपनी निजी संपत्ति की तरह समझने लगती हैं। स्थितियां तब और बिगड़ जाती हैं जब नदी जल बंटवारे संबंधी विवाद सस्ती राजनीति का जरिया बन जाते हैं। इस राजनीति के चलते मिलजुलकर काम करने के बजाय लोगों को गुमराह करने और यहां तक कि भड़काने का भी काम होता है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि नदी घाटी प्राधिकरण इस तरह की राजनीति पर किस तरह विराम लगाने में सहायक बनेंगे, लेकिन इतना तो है ही कि केंद्रीय सत्ता हाथ पर हाथ रखकर भी नहीं बैठे रह सकती थी।

यह अच्छा हुआ कि सरकार ने नदियों के जल प्रबंधन और उनके पानी के बंटवारे को लेकर नई व्यवस्था बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गंगा, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र-बराक समेत अन्य अनेक नदियों के लिए बनने वाले नदी घाटी प्राधिकरण वास्तव में कारगर साबित हों। इस क्रम में सरकार को यह खास तौर पर देखना होगा कि इन प्राधिकरणों का हश्र वैसा न होने पाए जैसा विभिन्न नदियों को साफ-स्वच्छ बनाने वाली योजनाओं का हुआ। बेहतर होगा कि नदी घाटी प्राधिकरण के गठन की ओर बढ़ने के साथ ही सरकार इसका आकलन करे कि नदियों को साफ करने की उसकी योजनाएं कितने पानी में हैं?

अगर नदियां प्रदूषण से मुक्त ही नहीं हो सकेंगी तो फिर नदी घाटी प्राधिकरण के गठन की कवायद सवालों के घेरे में ही होगी। यह ठीक नहीं कि तमाम वादों के बाद भी सरकार गंगा नदीं को प्रदूषण मुक्त करने के अपने वादे को पूरा करने में सफल नहीं हो सकी। उसे यह आभास होना ही चाहिए कि नदियों को दशा सुधारने के लिए नए सिरे वादे करने अथवा कोई नई व्यवस्था बनाने के साथ ही एक उदाहरण पेश करने की जरूरत है।