सीएनटी एक्ट में जमीन की खरीद-बिक्री में थाना क्षेत्र की सीमा की बाध्यता खत्म किए जाने से जनजातीय समाज के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे। सरकार की यह सकारात्मक पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
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छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री में थाना क्षेत्र की सीमा की बाध्यता खत्म किए जाने पर सरकार ने एक बार फिर गंभीरता से विचार शुरू किया है। यह सकारात्मक पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सीएनटी एक्ट की धारा 46-ए में प्रावधान है कि किसी आदिवासी की जमीन उसी थाना क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लोगों के बीच ही बेची या खरीदी जा सकती है। अब इसमें बदलाव के तहत थाना क्षेत्र की सीमा को खत्म किया जाएगा। इससे आदिवासियों सीधे लाभान्वित होंगे। सीएनटी के अन्य प्रावधानों से इतर इस प्रावधान में संशोधन में कोई जिच भी नहीं है। कारण यह कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ही यह मांग रही है कि थाना क्षेत्र की बाध्यता को खत्म किया जाए। सरकार अब इस पर सैद्धांतिक फैसला लेकर इसे ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल (टीएसी) के समक्ष रखेगी। इस बाबत टीएसी की एक उपसमिति पूर्व में मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के नेतृत्व में गठित की जा चुकी है। हालांकि, प्रावधान लागू होने की स्थिति में जमीन की सीलिंग भी होगी। कोई भी व्यक्ति निर्धारित सीमा तक ही जमीन ले सकेगा। इसपर अंतिम फैसला भी टीएसी का ही होगा। बता दें कि 1947 में सीएनटी में संशोधन करते हुए यह अनिवार्य कर दिया गया था कि आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री के लिए खरीदार और जमीन बेचने वाला आदिवासी समुदाय का ही होना चाहिए। इसके अलावा यह भी प्रावधान किया गया था कि दोनों का एक ही थाना क्षेत्र और जिले का निवासी होना भी अनिवार्य है। आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री में थाना क्षेत्र की बाध्यता खत्म करने की पहल पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल में भी हुई थी। तब ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल ने इसे समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया था। वैसे भी 70 वर्ष पुराना कानून आज प्रासंगिक नहीं है। थाना क्षेत्र की तब की सीमा और अब की सीमा में खासा अंतर आ चुका है। नौकरी, व्यवसाय और शिक्षा के लिए लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। ऐसे जनजातीय समुदाय को आदिवासी जमीन खरीदने का अधिकार होना चाहिए। थाना क्षेत्र की बाध्यता खत्म होने से जनजातीय समाज के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे। सीएनटी-एसपीटी में संशोधन की कोशिशों के असफल होने के बाद सरकार के स्तर से उठाया गया यह कदम उसे राजनीतिक दृष्टिकोण से भी फायदा पहुंचाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]