आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना पद छोड़ दिया। इस्तीफे की घोषणा के साथ ही उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए जिस तरह यह उल्लेख किया कि अब बाकी नेताओं की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए उससे तो यही झलकता है कि वह लोकसभा चुनावों में करारी हार के लिए पार्टी नेताओं को भी बराबर का जिम्मेदार मान रहे हैैं। ऐसा मानने के साथ ही वह यह भी कह रहे हैैं कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने किसी राजनीतिक दल नहीं, बल्कि पूरी सरकारी मशीनरी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनकी मानें तो हर संस्था को विपक्ष के खिलाफ इस्तेमाल किया गया।

क्या वह यह कहना चाहते हैैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में भी ऐसा हुआ? वह इस नतीजे पर भी पहुंच गए हैैं कि देश की कोई भी संस्था निष्पक्ष नहीं रह गई है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है। यह सब कहने का मतलब तो यही निकलता है कि भाजपा ने सरकारी मशीनरी पर काबिज होकर चुनाव जीत लिए। अगर राहुल गांधी सचमुच यही कहना चाहते हैैं तो फिर हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस की अध्यक्षता क्यों छोड़ रहे हैैं? अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा के साथ ही राहुल गांधी ने जो कुछ कहा उससे यही साफ हो रहा है कि वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि कांग्रेस ने कहीं कुछ गलती की है। वह संस्थाओं पर कथित कब्जे का जिक्र करने के साथ ही यह भी कहने में लगे हुए हैैं कि अब निष्पक्ष चुनाव की कोई सूरत नहीं दिख रही है। ऐसे निष्कर्ष हास्यास्पद ही हैैं।

राहुल गांधी यह हौवा भी खड़ा कर रहे हैैं कि अब देश को अकल्पनीय हिंसा का सामना करना होगा और किसानों, महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को सबसे अधिक नुकसान सहना होगा। यह केवल दुष्प्रचार ही नहीं है। ऐसा कहकर वह यही साबित कर रहे हैैं कि अगर सत्ता कांग्रेस के हाथ नहीं रहे तो फिर देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो सकता-और यहां तक कि लोकतंत्र भी सही सलामत नहीं रह सकता। शायद ही कभी किसी राष्ट्रीय दल के अध्यक्ष ने चुनाव नतीजों की ऐसी जन विरोधी व्याख्या की हो जैसी राहुल गांधी कर रहे हैैं। वह इस विचित्र व्याख्या के जरिये केवल देश की जनता का निरादर ही नहीं कर रहे हैैं, बल्कि एक तरह की सामंती मानसिकता का भी परिचय दे रहे हैैं।

शायद अपनी इसी मानसिकता के चलते कुछ समय पहले उन्होंने यह कहा था कि मोदी सरकार नफरत फैलाकर फिर से सत्ता में आ गई। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि राहुल गांधी कांग्रेस की अध्यक्षता छोड़ने के बाद क्या करेंगे, लेकिन इसके आसार कम ही हैैं कि पार्टी गांधी परिवार के प्रभाव से मुक्त हो सकेगी। एक तो इसलिए कि प्रियंका गांधी वाड्रा महासचिव पद पर कायम हैैं और दूसरे इसलिए कि पार्टी के अधिकांश नेता इस मानसिकता से ग्रस्त हो चुके हैैं कि कांग्रेस को गांधी परिवार के सहारे की जरूरत है। सच तो यह है कि कांग्रेस की पहली जरूरत इस मानसिकता से मुक्त होने की है और दूसरी जरूरत अपनी गलतियों की सही तरह से पहचान करने की।