लॉकडाउन से बाहर आना समय की मांग थी और देश की आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की जरूरत भी थी
कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ते जाने के बाद भी शारीरिक दूरी बनाए रखने और मास्क लगाने को लेकर लोग उतने सतर्क नहीं जितना उन्हेंं होना चाहिए।
लॉकडाउन की पाबंदियां हटाने का सिलसिला कायम करना समय की मांग और जरूरत थी। कोरोना संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को छोड़कर लॉकडाउन से मुक्त होने की जो प्रक्रिया शुरू होने जा रही है वह वैसे तो आठ जून से और तेज होगी, लेकिन यह बहुत कुछ राज्य सरकारों और एवं उनके प्रशासन पर निर्भर करेगी। यह अच्छा है कि लॉकडाउन शिथिल करने संबंधी अधिकार राज्यों को दे दिए गए हैं, लेकिन वे अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें तो बेहतर कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है और इसमें सफलता तब मिलेगी जब आवाजाही पर अनावश्यक अंकुश नहीं लगेगा। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार ने आवाजाही को प्रोत्साहित करने के कदम पहले भी उठाए थे, लेकिन वे राज्यों की अड़ंगेबाजी का शिकार हो गए।
राज्यों ने हवाई और रेल यात्रा शुरू करने के केंद्र सरकार के फैसले पर तो अनिच्छा प्रकट की ही, बस सेवाएं शुरू करने में भी मुश्किल से दिलचस्पी दिखाई। परिणाम यह हुआ कि कारोबारी गतिविधियां अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सकीं। कम से कम अब तो राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कारोबारी गतिविधियों को न केवल बल मिले, बल्कि उन्हेंं गति देने में आ रही बाधाएं प्राथमिकता के आधार पर दूर हों। इन बाधाओं को दूर करने में राज्यों को अतिरिक्त दिलचस्पी दिखानी चाहिए।
नि:संदेह लॉकडाउन से बाहर आने के कदम उठाए जाने का इंतजार ही किया जा रहा था, लेकिन इन कदमों के आधार पर ऐसी कोई व्याख्या नहीं होनी चाहिए कि कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो गया है या फिर टल गया है। सच यही है कि खतरा अभी बरकरार है। कोरोना संक्रमण के मामले यही बता रहे हैं कि अभी इस खतरे के साये में ही गुजर-बसर करना होगा। कोरोना के साथ जिंदगी जीने का मतलब यही है कि संक्रमण से बचे रहने के हर संभव उपायों के साथ काम-काज निपटाए जाएं। इन उपायों और खासकर शारीरिक दूरी के नियम के प्रति राज्य सरकारों और उनकी विभिन्न एजेंसियों के साथ-साथ आम लोगों को भी सतर्क रहना होगा।
यह ठीक नहीं कि कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ते जाने के बाद भी एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने और मास्क लगाने को लेकर लोग उतने सतर्क नहीं जितना उन्हेंं होना चाहिए। राज्यों को भी इसे लेकर विशेष ध्यान देना होगा कि उनका प्रशासन शारीरिक दूरी के नियम का पालन कराने के नाम पर कारोबारी गतिविधियों को बल देने वाली आवाजाही को नियंत्रित न करने लगे। इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे-न तो कारोबार जगत के लिए और न ही आम जनता के लिए।