एक दिन में एक करोड़ 33 लाख से अधिक टीके लगाया जाना कोरोना का मुकाबला करने में भारत की प्रतिबद्धता का परिचायक है। मंगलवार को रिकार्ड संख्या में टीके लगना भारत की बढ़ती क्षमता की भी गवाही दे रहे हैं। यह उन लोगों को जवाब भी है, जो टीकाकरण की रफ्तार पर सवाल उठाने के साथ सरकारी तंत्र पर तंज कस रहे थे। यह एक सप्ताह में दूसरी बार है, जब भारत में एक करोड़ से अधिक टीके लगाए गए। इसके पहले शुक्रवार को भी एक करोड़ से ज्यादा टीके लगाए गए थे। इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर टीकाकरण के मामले में इसी तरह के और रिकार्ड कायम कर सकती हैं। नि:संदेह टीकाकरण के मामले में मिल रही सफलताओं से यह भी पता चलता है कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें आवश्यक समन्वय एवं समझ-बूझ कायम कर लें तो वे अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह के बड़े लक्ष्य हासिल कर सकती हैं। उचित यह होगा कि यह समन्वय और समझ-बूझ टीकाकरण के साथ-साथ विकास एवं जनकल्याण के अन्य अभियानों में भी कायम हो। उम्मीद है कि ऐसा ही होगा। फिलहाल उन सबकी मुक्त कंठ से सराहना होनी चाहिए, जिनके सहयोग एवं समर्पण से टीकाकरण के मामले में रिकार्ड बन रहे हैं।

रिकार्ड संख्या में टीकाकरण होने का अर्थ है कि भारत टीकों की उपलब्धता बढ़ाने में समर्थ होता जा रहा है। इस दिशा में और ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि सभी पात्र लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य समय से पहले हासिल किया जा सके। यह लक्ष्य हासिल करने की कोशिश इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि इससे ही कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी को परास्त करने में आसानी होगी। इस कठिन चुनौती को आसान बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि आम लोग टीका लगवाना अपना फर्ज समझें। यह एक राष्ट्रीय दायित्व है। इसी के साथ आम जनता को यह भी समझना होगा कि केवल टीका लगवाना ही पर्याप्त नहीं। लोगों को कोरोना संक्रमण से बचे रहने के उपायों पर अमल करने के लिए भी तत्पर रहना होगा। यह सही है कि देश के एक बड़े हिस्से में कोरोना संक्रमण काबू में दिख रहा है, लेकिन एक तो उसके सिर उठा लेने की आशंका बनी हुई है और दूसरे कुछ राज्यों और खासकर केरल एवं महाराष्ट्र में वह नियंत्रित होता नजर नहीं आ रहा है। स्पष्ट है कि इन राज्यों को कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए और अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। जब तक कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका दूर नहीं होती तब तक न तो केंद्र एवं राज्य सरकारें चैन से बैठ सकती हैं और न ही आम जनता सतर्कता का परित्याग कर सकती है।