यह उचित ही है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यों से यह कहा कि वे अपने क्षेत्रों में रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान करें और उनके बायोमीट्रिक विवरण केंद्र सरकार को उपलब्ध कराएं। अब यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि उनके स्तर पर इस काम को पूरा करने में देरी न हो ताकि रोहिंग्या मुस्लिमों के इस विवरण के आधार पर म्यांमार के साथ बातचीत हो सके और इस मसले का समाधान किया जा सके। अच्छा होता कि इन घुसपैठियों की पहचान अब तक हो चुकी होती और उन्हें विशेष शिविरों में पहुंचा दिया गया होता। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि न केवल अवैध रूप से भारत में आए रोहिंग्या मुस्लिमों की संख्या बड़ी है, बल्कि वे देश के तमाम हिस्सों तक पहुंच चुके हैं।

कोई भी देश लाखों की संख्या में ऐसे घुसपैठियों के प्रति आंखें फेरे नहीं रह सकता जिनकी न तो पहचान की जा सके और न ही इसके बारे में सुनिश्चित हुआ जा सके कि वे आंतरिक सुरक्षा के लिए कोई खतरा उत्पन्न नहीं करेंगे। अब जब यह सामने आ चुका है कि रोहिंग्या मुस्लिम देश के अन्य स्थानों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का भी रुख कर रहे हैं और उन्हें वहां स्थानीय स्तर पर समर्थन-संरक्षण भी मिल रहा है तब यह और अधिक आवश्यक हो जाता है कि उनके बारे में जल्दी निर्णय लिया जाए। यह आवश्यकता इस तथ्य के सामने आने से भी रेखांकित होती है कि बोधगया में जनवरी में हुए बम विस्फोट का उद्देश्य रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ एकजुटता दिखाना और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए की ओर से दी गई यह सूचना न केवल चिंतित करने वाली है, बल्कि उन लोगों के लिए आंखें खोलने वाली भी जो बिना सोचे-समझे रोहिंग्या घुसपैठियों को देश में शरण देने की वकालत कर रहे हैं।

यह कोई अकेला मामला नहीं जिसमें रोहिंग्या घुसपैठियों और आतंकी घटनाओं के बीच संबंध के प्रमाण मिले हों, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक दल और मानवाधिकार कार्यकर्ता केंद्र को यह नसीहत देने में लगे हुए हैं कि रोहिंग्याओं के मामले में उसे उदारवादी रवैया अपनाना चाहिए। सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखे जा रहे लोगों को बिना जांचे-परखे देश के संसाधनों तक पहुंचने की इजाजत दी जा सकती है और वह भी तब जब आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां पहले से कायम हों? क्या यह देश के नागरिकों के अधिकारों का हनन नहीं होगा? कोई भी देश अपने संसाधनों पर अवैध नागरिकों के कब्जे की इजाजत नहीं दे सकता।

यह सही है कि शरणार्थियों के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र ने कुछ प्रावधान तय किए हैं, जिनका पालन किया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन अवैध घुसपैठियों की आवभगत की जाए जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। वैसे भी शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच अंतर किया जाना चाहिए।रोहिंग्या मुस्लिमों की पहली जिम्मेदारी म्यांमार शासन की है। भारत सरकार को म्यांमार के साथ संपर्क और संवाद के जरिये र्रोंहग्याओं की वापसी की प्रक्रिया को तेज करना होगा। इसमें और अधिक देरी से न केवल आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ेंगी, बल्कि रोहिंग्याओं का यह मामला और अधिक जटिल होता जाएगा।