सच-झूठ की परवाह न करने के क्या नतीजे होते हैैं, इसका ही उदाहरण है राहुल गांधी का खेद जताना। उन्हें सार्वजनिक तौर पर इसलिए खेद व्यक्त करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए यह कह दिया था कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी मान लिया कि चौकीदार चोर है। चूंकि उन्हें अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ता इसलिए उन्होंने बिना किसी देरी के खेद व्यक्त करके खुद को बचाया, लेकिन इससे उनकी विश्वसनीयता को जो चोट पहुंची उसकी भरपाई आसानी से नहीं होने वाली। भले ही वह झेंप मिटाने के लिए यह क्यों न कहें कि जनता के पैसे की चोरी की गई है और इसलिए कमलछाप चौकीदार चोर है, लेकिन उन्हें यह झूठ दोहराने में मुश्किल होने वाली है कि राफेल सौदे में चोरी की गई है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास मोदी सरकार को कठघरे में खड़े करने के लिए कोई ठोस मुद्दे नहीं थे।

सच तो यह है कि ऐसे एक नहीं अनेक मुद्दे थे और वे इसलिए थे, क्योंकि कोई भी सरकार इतने बड़े देश में पांच साल में जनता की सभी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकती। इसके अलावा यह भी किसी से छिपा नहीं कि मोदी सरकार अपने कई वायदे पूरे नहीं कर सकी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने झूठ का सहारा लेना बेहतर समझा। पता नहीं कहां से वह यह खोज लाए कि राफेल सौदे में चोरी हुई है। यदि उनके पास इस सौदे में गड़बड़ी के कोई ठोस सुबूत थे तो वे सामने रखे जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा करने के बजाय वह लगातार यह झूठ दोहराते रहे कि अनिल अंबानी की जेब में इतनी रकम डाल दी गई।

राहुल गांधी राफेल विमान की कीमत के साथ ही अनिल अंबानी की जेब में डाली जानी वाली तथाकथित रकम में अपने मन मुताबिक हेरफेर करते रहे। आखिर उन्होंने यह कैसे समझ लिया कि आम जनता बिना सुबूत इस आरोप को सच मान लेगी कि राफेल सौदे में गड़बड़ी की गई है? शायद उन्हें अपने झूठ पर ज्यादा यकीन था इसलिए वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ फ्रांस सरकार के स्पष्टीकरण और कैग की रपट को भी नकारते रहे। राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर निशाना साधने के लिए कुछ भी कहते रह सकते हैैं, लेकिन जनता के मन में यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर उन्हें चौकीदार चोर है कहने के लिए सुप्रीम कोर्ट से माफी क्यों मांगनी पड़ी? इसमें दोराय नहीं कि राहुल गांधी बीते कुछ समय से बेबाकी से बोल रहे हैैं, लेकिन मुश्किल यह है कि वह अपनी बातों से लोगों को भरोसा दिलाने में नाकाम हैैं। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि वह बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल जाते हैैं।

चौकीदार चोर है कहने पर उन्होंने सफाई दी कि राजनीतिक गर्मी में वह ऐसा बोल गए। नि:संदेह ऐसा कई नेताओं के साथ हो जाता है, लेकिन क्या कोई राजनीतिक गर्मी में एक ही बात को सौ बार दोहराता है? सवाल यह भी है कि क्या वह अपने इस कथन के लिए भी राजनीतिक गर्मी को जिम्मेदार बताएंगे कि सारे मोदी चोर होते हैैं?