कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल सौदे को घोटाला साबित करने की कोशिश में जिस तरह बेंगलुरु में हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड के कर्मचारियों के बीच पहुंचे और वहां वही सब कुछ दोहराया जिसे वह एक अर्से से प्रचारित करते चले आ रहे हैं उससे यह साफ है कि वह इस मसले को तूल देना छोड़ने वाले नहीं हैं। राफेल सौदे के बहाने वह हर दूसरे-तीसरे दिन मोदी सरकार के साथ-साथ रिलांयस डिफेंस कंपनी को जिस तरह अपने निशाने पर लेते हैं उससे तो यही लगता है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक उद्योगपति अनिल अंबानी से तकलीफ है। वह यह तो ढिंढोरा पीटने में लगे ही हुए हैं कि मोदी सरकार ने राफेल सौदे के जरिये अनिल अंबानी को उपकृत किया, लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं समझ रहे कि रिलायंस डिफेंस इकलौती कंपनी नहीं जिसे राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौ ने अपना साझीदार बनाया है।

दो दर्जन से अधिक और कंपनियां हैं जिसे दासौ ने साझीदार बनाया है। समझना कठिन है कि आखिर राहुल गांधी केवल रिलायंस डिफेंस को ही अपनी काली सूची में क्यों रखे हुए हैं? इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि मनमोहन सिंह सरकार के समय भी दासौ रिलायंस डिफेंस को साझीदार बनाने के लिए तैयार थी। यह राहुल ही बता सकते हैं कि उस समय उन्हें इस पर आपत्ति थी या नहीं? सवाल यह भी है कि अगर अनिल अंबानी इतने ही अवांछित हैं तो फिर संप्रग सरकार के समय उन्हें करीब एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू करने की अनुमति क्यों दी गई?

बेंगलुरु पहुंचकर राहुल गांधी ने यह नया शोशा छोड़ा कि एचएएल के राफेल सौदे से न जुड़ पाने के कारण उसके करीब दस हजार कर्मचारियों की नौकरी जाने वाली है। इस पर यकीन करना कठिन है कि ऐसी कोई नौबत आने वाली है। राहुल देश में घूम-घूम कर यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल सौदे के जरिये अपने मित्र अनिल अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपये डाल दिए। इस पर दासौ कंपनी को यह बयान जारी करना पड़ा कि रिलायंस डिफेंस से उसकी साझीदारी तो उस निवेश का महज दस फीसद ही है जो उसे पहले चरण में करना है। इसका मतलब है कि अनिल अंबानी की कंपनी को 30 हजार करोड़ रुपये का ठेका मिलने की बातें एक शोशा ही हैं।

यह ठीक है कि सरकार की ओर से राहुल गांधी के आरोपों का खंडन किया जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि वह कब तक उनके आरोपों पर सफाई देने की मुद्रा में बनी रहेगी? क्या यह जरूरी नहीं कि सरकार राफेल सौदे की वह पूरी जानकारी सामने रखे जो गोपनीयता के दायरे में न आती हो और जिसके जरिये इस सौदे को लेकर फैलाए जा रहे झूठ को रोका जा सके? यह ठीक नहीं कि सरकार केवल आरोपों का जवाब देती दिख रही है। चूंकि राहुल के बयानों के कारण लोग सवालों और संशय से घिर रहे हैं इसलिए सरकार को ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस अहम सौदे को लेकर भ्रम का माहौल न बन सके।