लोक कल्याणकारी शासन प्रणाली को सार्थक बनाने के लिए अनिवार्य है कि जनता द्वारा चुनी गई सरकार ऐसे फैसले करे जो खास वर्गो या जातियों-उप जातियों के बजाय समग्र समाज के लिए कल्याणकारी हों। शुभ संकेत है कि बिहार सरकार के पूर्ण शराबबंदी, दहेज उन्मूलन और बाल विवाह निषेध समेत तमाम फैसलों में लोक कल्याण का यह भाव नजर आता है। बिहार के संदर्भ में यह बात इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य जातिवाद, खासकर जाति आधारित वोटबैंक राजनीति के लिए बदनाम है। जातियां सामाजिक सच्चाई हैं। इन्हें आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता, पर यह आवश्यक है कि लोग अपनी जाति के प्रति गर्व का भाव रखते हुए अन्य जातियों के प्रति भी सम्मानजनक नजरिया रखें। चुनावी राजनीति इसमें बाधा पैदा करती है। राजनीतिक पार्टियां जातियों के वोटबैंक मजबूत करने के लिए जातिवाद को हवा देती हैं। ये पार्टियां सत्ता हासिल होने पर अपने फैसलों से जातिवाद को बढ़ावा देती हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सराहना की जानी चाहिए कि उनके फैसलों में यह संकीर्णता नहीं दिखती।

मौजूदा सरकार की छात्रओं को साइकिल-पोशाक, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, स्वरोजगार भत्ता, अग्रिम कृषि इनपुट और तमाम अन्य फैसलों में खास जातियों के बजाय बड़े समूहों को लाभार्थी बनाया गया। जिन वंचित जातियों को विशेष सहायता की जरूरत है उनके लिए संविधान में ही इस आशय के प्रावधान किए गए हैं। इनका लाभ संबंधित जातियों को आरक्षण और अन्य प्राथमिकताओं के रूप में प्राप्त होता है। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, पर इन जातियों को वोटबैंक मानकर इनके कथित उत्थान के नाम पर फैसले किए जाने से सामाजिक माहौल खराब होता है। वास्तविक विकास की पहली शर्त है कि समाज में सद्भाव रहे यद्यपि यह बात राजनीतिक दलों को रास नहीं आती। बिहार के कुछ राजनीतिक दल सिर्फ जातिवाद के आधार पर ही राजनीति करने के आदी हैं। नीतीश कुमार सरकार की कार्यशैली से जाति आधारित वोटबैंक राजनीति कमजोर पड़ने के आसार हैं। यदि ऐसा हुआ तो यह बिहार के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। अन्य राजनीतिक दलों को भी समय रहते अपनी रणनीति और कार्यशैली बदल लेनी चाहिए। इसी में उनका और राज्य का हित है।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]