बहुचर्चित आदर्श सोसायटी घोटाले में बंबई उच्च न्यायालय ने कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को जिस तरह राहत दी उससे सीबीआइ की नाकामी नए सिरे से रेखांकित हो गई। उच्च न्यायालय ने अशोक चव्हाण के खिलाफ मुकदमा चलाने की महाराष्ट्र के राज्यपाल की मंजूरी को इस आधार पर रद किया, क्योंकि उसकी नजर में सीबीआइ ऐसे कोई प्रमाण ही पेश नहीं कर सकी जिससे उक्त मंजूरी को उचित माना जाता। इस मंजूरी को खारिज किए जाने का मतलब है कि अशोक चव्हाण इस घोटाले से बरी हो गए। क्या यह अजीब नहीं कि घोटाले के पुख्ता प्रमाण के तौर पर आदर्श सोसायटी की ऊंची इमारत खड़ी है, लेकिन इस सोसायटी के निर्माण को अनुचित तौर पर मंजूरी देने और उसके बदले फ्लैट हासिल करने के आरोपी अशोक चव्हाण एक तरह से दोषमुक्त करार दिए गए? स्पष्ट है कि यह मामला 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की याद दिला रहा है। स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी होने की बात सीबीआइ, ईडी से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी कही, लेकिन फैसला यह आया कि कहीं कुछ हुआ ही नहीं इसलिए सभी को बरी किया जाता है। ऐसे फैसले एक तरह से जीती मक्खी निगलने जैसे होते हैं। आखिर यह क्या पहेली है कि जांच एजेंसियां जिसे प्रमाण के तौर पर पेश कर रही हैं वह अदालतों के समक्ष साक्ष्य के रूप में ठहर ही नहीं रहा? यह वह गंभीर सवाल है जिसका जवाब जांच एजेंसियों को तलाशना ही होगा। इस सवाल का सामना सरकारों को भी करना होगा, क्योंकि कोई भी जांच एजेंसी हो वह उन्हीं के तहत काम करती है। एक ऐसे समय जब पहले 2जी और अब आदर्श सोसायटी मामले में आए फैसले समाज के एक हिस्से में इस धारणा को गहराने का काम कर रहे हैं कि पहुंच और प्रभाव वाले लोगों के समक्ष कानून के लंबे हाथ बौने ही साबित होते हैं तब जांच एजेंसियों को अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए कुछ करने की जरूरत है। वे ऐसा करें, यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। 1नि:संदेह 2जी और अब आदर्श सोसायटी मामले में आए फैसलों के बाद यह कहना और कठिन है कि सीबीआइ सरकार के हाथ की कठपुतली है और वह तो वही करती है जो सरकार चाहती है, क्योंकि इन दोनों फैसलों से कुल मिलाकर उसकी किरकिरी ही हो रही है। आखिर कोई सरकार सीबीआइ के जरिये ऐसा काम क्यों कराएगी जिससे उसकी किरकिरी हो और विरोधी राजनीतिक दलों को खुद को सही बताने का मौका मिले? इसके बावजूद इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि सीबीआइ बड़े मामलों और खास तौर पर नेताओं से जुड़े मामलों में नाकामी के लिए बदनाम होती जा रही है। उसकी नाकामी उसकी साख को रसातल में ले जा रही है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी आम जनता के भरोसे को खो दे। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि 2जी मामले में फैसला आने के बाद सीबीआइ चिंता में है, क्योंकि इस तरह से वह न जाने कितने बार चिंतित हो चुकी है और हालात ढाक के तीन पात वाले ही नजर आ रहे हैं।