कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप यही बता रहा है कि हाल-फिलहाल उससे छुटकारा मिलने वाला नहीं है। बीते 24 घंटे में जिस तरह 90 हजार से अधिक कोरोना के नए मरीज मिले और कुल मामलों की संख्या 41 लाख से अधिक हो गई, उससे भारत ब्राजील से आगे निकल गया, जो कोरोना मरीजों के लिहाज से अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर था। यद्यपि भारत में कहीं अधिक आबादी है और कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या जनसंख्या के अनुपात में ही देखी जानी चाहिए, लेकिन यह तो चिंताजनक है ही कि करीब छह माह बाद भी कोरोना मरीजों की संख्या में गिरावट का सिलसिला कायम होता नहीं दिखता। जब तक यह सिलसिला कायम नहीं होता, तब तक यह कहना कठिन है कि देश में कोरोना के काबू में आने की सूरत कब बनेगी?

फिलहाल ऐसी कोई सूरत बनती इसलिए भी नहीं दिख रही है, क्योंकि जिन कुछ शहरों में कोरोना मरीजों की संख्या में गिरावट देखी जा रही थी, वहां उनकी तादाद फिर से बढ़ रही है। कोरोना को तो हारना ही है, लेकिन कोशिश यह होनी चाहिए कि उस पर जल्द काबू पाया जाए। यह कोशिश केवल केंद्र और राज्यों के साथ उनकी विभिन्न एजेंसियों को ही नहीं करनी, बल्कि आम जनता को भी करनी है।

सब जान रहे हैं कि कोरोना से बचाव का उपाय सेहत के प्रति सतर्कता, एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखना और मास्क का इस्तेमाल करना है, लेकिन इसके बावजूद लापरवाही देखने को मिल रही है। सबसे हैरानी की बात यह है कि मास्क का इस्तेमाल करने से या तो बचा जा रहा या फिर उसका ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। कुछ ऐसी ही स्थिति सार्वजनिक स्थलों पर एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखने के मामले में भी देखने को मिल रही है। यह जानबूझकर खतरे की चपेट में आने वाला काम है। नि:संदेह कोरोना से डरने की जरूरत नहीं, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि आवश्यक सावधानी का परिचय देने से इन्कार किया जाए। चूंकि ऐसा किया जा रहा है, इसलिए कोरोना काबू में आता नहीं दिखता।

समझना कठिन है कि लोगों को मास्क का सही इस्तेमाल करने में क्या परेशानी है? यह संतोष की बात अवश्य है कि कोरोना मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं और मृत्यु दर में गिरावट जारी है, लेकिन आखिर इसकी अनदेखी क्यों की जा रही है कि करीब 70 हजार लोग काल के गाल में समा गए हैं और इनमें वे भी हैं जिन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं थी? अच्छा हो कि लोग यह समझें कि यदि उनकी ओर से अपेक्षित सावधानी नहीं बरती गई तो कोरोना पर लगाम लगाने की कोशिशों पर पानी ही फिरेगा।