कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने के पहले और बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने जो कुछ कहा वह किसी पहेली से कम नहीं। उन्होंने जिस अंदाज में अपनी बात कही कि उससे महाराष्ट्र में जल्द सरकार गठन की संभावनाएं स्याह दिखने लगी हैैं। शरद पवार की मानें तो उन्होंने सोनिया गांधी से महाराष्ट्र की राजनीति पर तो चर्चा की, लेकिन सरकार गठन को लेकर उनसे कोई बात नहीं हुई। इसका मतलब यही हो सकता है कि वह या तो अपने पत्ते खोलना नहीं चाह रहे हैैं या फिर कांग्रेस शिवसेना के साथ खड़ी होना पसंद नहीं कर रही है। सच्चाई जो भी हो, यह संभव नहीं कि शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर सोनिया गांधी से विचार-विमर्श तो करें, लेकिन इस दौरान सरकार गठन पर कोई चर्चा न हो।

सोनिया गांधी से मुलाकात करने के पहले उनका यह कहना था कि सरकार गठन का सवाल तो शिवसेना से पूछा जाना चाहिए। उनके ये बयान इसलिए हैरान करने वाले हैैं, क्योंकि अभी तक यही सुनने को मिल रहा था कि शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से बनने वाली सरकार के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की तैयारी हो रही है। इससे यही संकेत मिल रहा था कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का मन बना चुकी हैैं। इस संकेत को बल प्रदान कर रहे थे शिवसेना नेताओं के इस आशय के दावे कि सरकार तो उनकी ही बनेगी।

पता नहीं महाराष्ट्र में सरकार गठन की कवायद का ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन शरद पवार के बयान के बाद शिवसेना का दिल बैठना तय है। सच तो यह है कि अब उसकी और फजीहत भी होगी। आखिर जब उसके पास सरकार बनाने लायक संख्याबल ही नहीं था तो फिर वह किस मुंह से राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले का विरोध कर रही थी? इसे उतावलेपन और अवसरवाद की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से समर्थन की गारंटी मिले बिना उसने भाजपा से नाता तोड़ लिया।

फिलहाल तो वह न घर की दिख रही है और न ही घाट की। अपनी इस दयनीय दशा के लिए वही जिम्मेदार है। उसने अपनी सत्तालोलुपता से केवल अपने समर्थकों को ही नाराज नहीं किया है, बल्कि अपने हाथों अपनी जड़ें खोदने का भी काम किया है। उसने यही साबित किया कि उसे उन राजनीतिक मूल्यों-मान्यताओं से कोई लेना-देना नहीं जिनके प्रति प्रतिबद्ध होने का दावा किया करती थी। यह अच्छा है कि कांग्रेसी नेताओं का एक वर्ग ऐसे सत्तालोलुप दल से दूरी बनाने में अपनी भलाई समझ रहा है।