पाकिस्तान आसानी से सुधरने वाला नहीं, इसका पता उसकी उन हरकतों से चल रहा है जो वह भारतीय सीमा पर सैन्य दुस्साहस के रूप में अपनी खिसियाहट मिटाने के लिए कर रहा है। इसकी आशंका थी कि भारतीय वायुसेना की ओर से बालाकोट में किए गए गए हवाई हमले के बाद बौखलाया पाकिस्तान ऐसी हरकतें करेगा। इन हरकतों का जवाब पूरी दृढ़ता और निर्ममता से दिया जाना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।

भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह युद्ध नहीं चाहता। आगे भी उसकी यही चाहत रहनी चाहिए, लेकिन अगर पाकिस्तान हद लांघता है तो भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसे उसकी भारी कीमत चुकानी पड़े। पाकिस्तान की हरकतों से यह साफ है कि वह जरूरी सबक सीखने को तैयार नहीं। वह बालाकोट हमले का जवाब देने की कोशिश इसीलिए कर रहा है ताकि अपना चेहरा बचाने के साथ अपनी गलतियों पर पर्दा डाल सके। उसकी ऐसी ही एक कोशिश को नाकाम किया गया और उसके एक विमान को मार भी गिराया गया, लेकिन इस दौरान भारतीय वायुसेना का भी एक विमान क्षतिग्रस्त हुआ और उसके पायलट को जख्मी हालत में पाकिस्तान में उतरना पड़ा। दुर्भाग्य से वहां उसे बंधक बना लिया गया। सैन्य संघर्ष में ऐसे हादसे होते हैं और कभी-कभी आघात भी सहने पड़ते हैं। इनसे हमें विचलित नहीं होना चाहिए और न ही अपने लक्ष्य को ओझल होने देना चाहिए।

हमें अपने पायलट की सही-सलामत वापसी की चिंता के साथ अपने इस लक्ष्य से डिगना नहीं कि पाकिस्तान पर तब तक दबाव बनाए रखना है जब तक वह आतंकियों को पालने से तौबा नहीं करता। इसके लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए और उसके किसी झांसे में नहीं आना चाहिए-ठीक वैसे ही जैसे बालाकोट में हमला करते समय परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की उसकी धौंस की अनदेखी कर दी गई। ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। आज जितनी जरूरत पाकिस्तान के सैन्य दुस्साहस से सावधान रहने और उसे करारा जवाब देने की है उतनी ही उसके छल-प्रपंच से सतर्क रहने की भी। इसके प्रति तो हर देशवासी को सजग रहना होगा कि देश में शांति और सद्भाव बना रहे। इससे ही सेनाओं को हर चुनौती का सामना करने का संबल और साहस मिलेगा।

पाकिस्तान के साथ दुनिया को यह संदेश जाना ही चाहिए कि आज का भारत नए मिजाज का भारत है। इस बदले हुए मिजाज का परिचय देने में राजनीतिक नेतृत्व की महती भूमिका है। इस भूमिका के निर्वाह के लिए केवल राजनीतिक परिपक्वता का ही प्रदर्शन नहीं होना चाहिए, बल्कि सेना की जरूरतों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की तत्परता भी दिखाई जानी चाहिए।

यह खेद की बात है कि अतीत में यह जानते हुए भी ऐसा नहीं किया गया कि हमारी सेनाएं आधुनिकीकरण की दौड़ में पिछड़ रही हैं। यह समय गलतियों का हिसाब करने का नहीं, बल्कि सही सबक सीखने का है। यह ठीक नहीं कि जब देश युद्ध जैसे हालात से दो-चार है तब वायुसेना को निर्णायक मजबूती देने वाले राफेल विमानों का सौदा अदालत में है। यह बुरी राजनीति का ही एक नमूना है। ऐसी राजनीति राष्ट्र हित में बाधक है।