यह अच्छा हुआ कि संसद से पारित कृषि विधेयकों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही उन्हें अधिसूचित कर दिया गया। यह कार्य इसके बावजूद किया जाना आवश्यक था कि कई विपक्षी दल इन विधेयकों के विरोध में किसानों को सड़कों पर उतारने के साथ राष्ट्रपति से यह आग्रह करने में लगे हुए थे कि वह उन पर हस्ताक्षर न करें। यह एक अलोकतांत्रिक मांग थी और ऐसी मांगों की अनदेखी ही होनी चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि जो विपक्षी दल राष्ट्रपति से कृषि विधेयकों को मंजूरी न देने की अपील कर रहे थे, उन्होंने राज्यसभा में उन पर बहस करने के बजाय हंगामा करना आवश्यक समझा और वह भी ऐसा हंगामा, जो समस्त मर्यादाओं को तार-तार कर गया। वास्तव में इन विधेयकों के पारित होने के दिन राज्यसभा में जो कुछ हुआ, वह हंगामा नहीं, हुड़दंग था।

यह पहली बार नहीं जब विपक्ष ने किसी क्षेत्र में सुधार की पहल का बेजा विरोध किया हो। इस तरह का आचरण वह पहले भी करता रहा है, लेकिन यह देखना अकल्पनीय है कि जो कानून किसानों के हित में हैं, उन्हें उनके लिए अहितकारी बताने के लिए छल और झूठ का सहारा लेने से भी नहीं बचा गया।

छल और झूठ की राजनीति किस तरह अपना असर दिखाती है, इसका प्रमाण है प्रारंभ में प्रस्तावित कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले शिरोमणि अकाली दल का राजग से बाहर आ जाना और पंजाब एवं हरियाणा में इन कानूनों के खिलाफ किसानों का धरना-प्रदर्शन जारी रहना। इससे खराब बात और कोई नहीं कि दुष्प्रचार की राजनीति इस तरह अपना असर दिखाए। इस तरह की राजनीति से सरकार को न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि यह भी देखना होगा कि नए कृषि कानूनों पर अमल इस तरह हो कि किसानों को वास्तव में लाभ मिले और वे आत्मनिर्भर बनें। प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में नए कृषि कानूनों को किसानों के आत्मनिर्भर बनने में मददगार बताया। ऐसा वास्तव में हो, इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए।

नए कृषि कानून किसानों को अपनी उपज मंडियों के बाहर भी बेचने की स्वतंत्रता प्रदान करने वाले हैं, लेकिन इसे सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि यह स्वतंत्रता उनकी आय बढ़ानी वाली साबित हो। यह केवल केंद्र सरकार ही नहीं, राज्य सरकारों को भी देखना चाहिए। जब कृषि समवर्ती सूची का विषय है, तब राज्यों का भी यह दायित्व बनता है कि वे किसानों की भलाई के लिए उठाए जा रहे कदमों को अपना सहयोग प्रदान करें। यह ठीक नहीं कि कुछ राज्य सरकारें ऐसा कुछ करने के बजाय किसानों को बरगलाने का काम कर रही हैं। यह एक तरह से किसान विरोधी आचरण है।