स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले संदेश की महत्ता इससे समझी जा सकती है कि इसे राष्ट्र के नाम संबोधन की संज्ञा दी जाती है। इस संबोधन के जरिये राष्ट्रपति आम जनता को प्रेरित और प्रोत्साहित करने के साथ ही देश की उपलब्धियों और चुनौतियों को भी रेखांकित करते हैैं। इसी के साथ वह नीति-निर्माताओं को भी कुछ सीख और सबक देने की कोशिश करते हैैं।

कहना कठिन है कि वे इसे किस रूप में और कितना ग्रहण करते हैैं, लेकिन 72वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह बिल्कुल सही कहा कि आज हम अपने इतिहास के एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जो अपने आप में बहुत अलग है और हम कई ऐसे लक्ष्यों के काफी करीब हैैं जिनके लिए हम वर्षों से प्रयास करते आ रहे हैैं। यह कथन वास्तविकता की झलक पेश करता है और इसकी पुष्टि इससे होती है कि आज दुनिया भी भारत को अपनी अहमियत साबित करते हुए देख रही है।

यह देखना सुखद है कि भारत अपने उभार से दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि उसका समय आ गया है, लेकिन राष्ट्रपति ने यह भी सही याद दिलाया कि आज जब हम एक निर्णायक दौर से गुजर रहे हैैं तब हमें इस पर जोर देना है कि हम ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में न उलझें और न ही निरर्थक विवादों में पड़कर लक्ष्य से भटकें। दुर्भाग्य से आज यही अधिक हो रहा है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि कुछ लोगों ने इसी को अपना एजेंडा बना रखा है कि कैसे नित-नए निरर्थक मसलों को उछाला जाए और उन्हें जबरन राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनाया जाए?

चिंताजनक केवल यह नहीं है कि व्यर्थ के मसले रह-रह कर सामने लाए जाते हैैं, बल्कि यह भी है कि वे समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण बनते हैैं। नि:संदेह इससे मूल मुद्दे प्राथमिकता से बाहर होते हैैं और जब ऐसा होता है तब हम एक राष्ट्र के रूप में अपना कीमती वक्त ही जाया करते हैैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मूल मुद्दों से ध्यान भंग करने का काम राजनीतिक दल कुछ ज्यादा ही करने लगे हैैं। अब तो वे जानबूझकर निरर्थक विवाद पैदा करते हैैं। उन्हें बल इसलिए मिलता है, क्योंकि ऐसे विवादों को तूल देने वाले भी कम नहीं। इस सबसे यही प्रकट होता है कि एक राष्ट्र के रूप में अभी हमें परिपक्व होना और जिम्मेदारी के भाव से लैस होना शेष है।

कुछ समय पहले तक यह कहा जाता था कि हम एक नए देश हैैं, लेकिन अब इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि जल्द ही हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर लेंगे। बेहतर हो कि आजादी के अहसास के साथ हर कोई इस पर चिंतन-मनन भी करे कि हम अपने लक्ष्यों के और करीब कैसे पहुंचें। भारत के सपने साकार करने के उपायों पर लोगों की राय भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन इससे कोई असहमत नहीं हो सकता कि हमारी एकजुटता और परिपक्वता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हिंद की जय इससे ही होगी।