आजमगढ़ में पूर्वाचल एक्सप्रेस-वे की आधारशिला रखने के बाद एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर कांग्रेस पर करारा हमला बोला कि क्या वह केवल मुसलमान पुरुषों की पार्टी है? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के एक कथित बयान का उल्लेख करते हुए उन्होंने तीन तलाक पर रोक लगाने वाले उस विधेयक का खास तौर पर जिक्र किया जिसे विपक्षी दल संसद में रोके हुए हैं। इस पर हैरानी नहीं कि कांग्रेस को प्रधानमंत्री का यह बयान रास नहीं आया और उसने उन पर झूठ बोलने का आरोप मढ़ा, लेकिन अच्छा होता कि वह तीन तलाक संबंधी विधेयक पर अपना रुख स्पष्ट करती। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि तीन तलाक संबंधी विधेयक पर कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों का रवैया टकराव भरा ही अधिक है। आखिर ऐसे रवैये को देखते हुए यह कैसे कहा जा सकता है कि उन्हें तीन तलाक का शिकार बन रहीं मुस्लिम महिलाओं की चिंता है?

यह एक तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक झटके में दिए जाने वाले तीन तलाक को अवैध और असंवैधानिक ठहराए जाने के बाद भी इस तरह से तलाक देकर महिलाओं को छोड़ देने के मामले सामने आ रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यही है कि अधिकांश विपक्षी दल मुस्लिम वोट बैंक के लोभ में उन मुस्लिम संगठनों की तरह व्यवहार कर रहे हैं जो तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने को तैयार नहीं। तीन तलाक एक सामाजिक कुप्रथा है और अनुभव यही बताता है कि ऐसी कुप्रथाओं से लड़ने के लिए कानून का भी सहारा लेना पड़ता है। यह निराशाजनक है कि तीन तलाक के खिलाफ सामाजिक चेतना जगाने का वैसा काम नहीं हो सका जैसा आवश्यक था। कोई भी समझ सकता है कि यह आवश्यक कार्य इसीलिए नहीं हो सका, क्योंकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इस मसले पर मुस्लिम महिलाओं की चिंता करने के बजाय मुस्लिम वोट बैंक की परवाह की।

मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा के मामले में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के रवैये की आलोचना करने के साथ ही प्रधानमंत्री ने संसद के आगामी सत्र में उनसे सहयोग की भी अपेक्षा की, लेकिन इसमें संदेह है कि वे यह सहयोग भाव दिखाने को तैयार होंगे। मौजूदा राजनीतिक माहौल में अंदेशा यही है कि तीन तलाक से संबंधित विधेयक के साथ-साथ अन्य अनेक मसलों पर भी सत्तापक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज होगा। इससे किसी का भी हित नहीं होने वाला। समस्या यह है कि पक्ष-विपक्ष में जुबानी जंग तो हर मसले पर होती है, लेकिन सार्थक चर्चा किसी भी मुद्दे पर नहीं होती। अब तो फालतू के तमाम मसलों पर वक्त जाया किया जाता है।

नि:संदेह विपक्षी दलों को सरकार की आलोचना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे बेजा सवाल पूछें। प्रधानमंत्री की ओर से आजमगढ़ की रैली में उछाले गए चुभते हुए सवाल पर आपत्ति जताने वाली कांग्रेस इस पर गौर करे तो बेहतर कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के जेल जाने पर नरेंद्र मोदी पर तंज कसना कितना सही है?