प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर चर्चा के क्रम में जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर का उल्लेख करते हुए यह ठीक ही कहा कि यह ईमानदारी का उत्सव है, लेकिन यह भी सही है कि इस टैक्स व्यवस्था में अभी उत्सवधर्मिता का भाव समाहित होना शेष है। चूंकि इस टैक्स व्यवस्था को लागू हुए एक साल होने वाला है इसलिए इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसी के साथ इस पर भी विचार किया जाना चाहिए कि जीएसटी का अनुपालन और अधिक बेहतर तरीके से कैसे हो? इस प्रश्न पर इसलिए गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि राजस्व संग्रह उम्मीदों के अनुरूप नहीं हो पा रहा है। नि:संदेह इसका एक कारण इस नई टैक्स व्यवस्था की कुछ जटिलताएं भी हैं, लेकिन एक वजह टैक्स चोरी की प्रवृत्ति भी है। जो भी इस प्रवृत्ति से ग्रस्त हैं उन्हें यह समझने में और देर नहीं करनी चाहिए कि हेराफेरी अधिक दिनों तक चलने वाली नहीं है। चूंकि टैक्स चोरी के मामले सामने आने का सिलसिला कायम है इसलिए सरकार को उसकी रोकथाम के लिए अभियान चलाने पर विचार करना पड़ रहा है। इसके तहत दोषी लोगों पर भारी जुर्माना लगाने के साथ कानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार किया जा रहा है। यदि टैक्स चोरी नहीं रुकती तो सरकार के समक्ष इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि वह सख्त तौर-तरीकों को अपनाए।

यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि कई कारोबारी अभी भी फर्जी बिल के जरिये इनपुट टैक्स क्रेडिट ले रहे हैं। इसी तरह कुछ लोग जानबूझकर कारोबार कम करके दिखा रहे हैं या फिर नकद लेन-देन भी कर रहे हैं। विडंबना यह है कि इन अनुचित तौर-तरीकों का इस्तेमाल कुछ बड़े कारोबारी भी कर रहे हैं। यह महज गलत तरीके से पैसा बनाने का मामला ही नहीं, बल्कि देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी से जानबूझकर मुंह मोड़ना भी है। इसका कोई औचित्य नहीं कि सक्षम-समर्थ लोग टैक्स देने से बचने के लिए अनुचित साधनों का इस्तेमाल करें। ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए। एक ओर जहां टैक्स चोरी करने वालों को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है वहीं दूसरी ओर ईमानदारी से टैक्स देने वालों को प्रोत्साहित करने की भी जरूरत है। दरअसल प्रोत्साहन के उपायों से ही जीएसटी को ईमानदारी के उत्सव के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। सरकार को ईमानदारी से जीएसटी अदा करने वालों को प्रोत्साहित करने के साथ ही इस टैक्स व्यवस्था की शेष जटिलताओं को भी समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। एक वर्ष बाद यह देखा ही जाना चाहिए कि इस व्यवस्था में क्या कुछ तब्दीली करने की आवश्यकता है? यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने जीएसटी के अनुपालन में राज्यों की भूमिका की सराहना की। निश्चित तौर पर जीएसटी इसीलिए क्रियान्वित हो सका, क्योंकि राज्यों ने आम सहमति के आधार पर आगे बढ़ने और केंद्र से सहयोग करने का फैसला किया। अपने देश का जैसा राजनीतिक परिदृश्य बन गया है उसे देखते हुए यह सहमति न केवल उल्लेखनीय है, बल्कि नई राह दिखाने वाली भी। जीएसटी काउंसिल केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग का एक नया अध्याय है। ऐसे और अध्याय रचने की जरूरत है।