सबसे बड़ा खतरा बन गए कोरोना वायरस के संक्रमण को थामने के लिए देश के लोगों ने जनता कर्फ्यू के दौरान जिस तरह खुद को अपने घरों तक सीमित रखा वह सामूहिक संकल्प शक्ति की अद्भुत मिसाल है। यह मिसाल इसीलिए कायम हो सकी, क्योंकि सभी ने संयम और अनुशासन का परिचय दिया। यह पूरी दुनिया के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण भी है और यह संदेश भी कि भारत की जनता धैर्य का परिचय देना कहीं अच्छे से जानती है। आखिर ऐसा कब हुआ है जब सवा अरब से अधिक आबादी वाला देश वह सब करने के लिए सजग-सचेत हो जाए जो उससे अपेक्षित हो? जनता कर्फ्यू के दौरान केवल संयम का ही परिचय नहीं दिया गया, बल्कि शाम के पांच बजते ही अपनी-अपनी तरह से उन सबका अभिनंदन भी किया गया जो इस गहन संकट के समय लोगों की जीवन रक्षा के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। चिकित्सकों, स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस कर्मियों के साथ उन सबका अभिनंदन समय की मांग थी, जो आवश्यक सेवाओं को सुचारु रूप से संचालित करने में जुटे हुए हैं।

चूंकि राष्ट्र इन सबका ऋणी है इसलिए जितना जरूरी उनके प्रति आभार व्यक्त करना था उतना ही उनका उत्साहवर्धन करना भी। आभार जताने और उत्साहवर्धन करने वाले वे क्षण कभी भूले नहीं जा सकते जब देश के हर हिस्से में-महानगरों से लेकर सुदूर गांवों तक में कोई थाली बजा रहा था तो कोई शंखनाद कर रहा था। कोई मुखर था तो कोई मौन रहकर सबके कल्याण की कामना कर रहा था। यह उल्लेखनीय है कि यह सब कुछ प्रधानमंत्री की एक अपील पर हुआ और वह भी तब जब उन्होंने यह अपील महज दो दिन पहले की थी। ऐसा करके उन्होंने केवल देश को जागृत एवं अनुशासन में बंधने का मंत्र ही नहीं दिया था, बल्कि अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय भी दिया था। शायद वह अच्छी तरह जानते हैं कि इतने बड़े देश में लोगों को कैसे धैर्य का परिचय देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने देश की जनता की कर्तव्यपरायणता को रेखांकित करते हुए यह सही कहा कि देश की जनता ने बता दिया कि वह बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना कर सकती है।

जनता कर्फ्यू के दौरान संयम और अनुशासन के राष्ट्रीय यज्ञ में जो भी सम्मिलित हुआ और जिसने भी अपने योगदान की आहुति दी वह साधुवाद का पात्र है, क्योंकि यह उम्मीद जग आई है कि हम यकायक सामने आ खड़े हुए संकट को दूर करने में कामयाब हो सकते हैं। इस उम्मीद को जगाए रखना होगा। इसी के साथ यह ध्यान रखना होगा कि संकट बड़ा है और फिलहाल वह आसानी से टलता हुआ नहीं दिख रहा, इसलिए ऐसा ही संयम और अनुशासन दिखाने की आवश्यकता आगे भी पड़ेगी। यह सही है कि एक दिन सबके सामाजिक रूप से अलग-थलग रहने से कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में मदद मिली, लेकिन जिस तरह तमाम शहरों को लगभग पूरी तरह बंद करने के साथ ही ट्रेन और बस सेवाओं के स्थगन को विस्तार दिया गया उससे यही रेखांकित होता है कि अभी और सावधानी बरतनी होगी। इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यूरोप के कहीं कम आबादी और स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से समर्थ देश इस चुनौती का सामना नहीं कर पा रहे हैं। कोरोना वायरस रूपी सेहत के सबसे खतरनाक शत्रु को परास्त करने के लिए यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ स्थानीय प्रशासन के निर्देशों पर अमल करते समय वैसी ही तत्परता का परिचय दिया जाए जैसी जनता कर्फ्यू के समय दिया गया। सेहत और साफ-सफाई के प्रति अतिरिक्त ध्यान देने के साथ खुद को सामाजिक रूप से ज्यादा से ज्यादा अलग-थलग रखने में ही हम सबकी भलाई है। इस संकट से पार पाने का भरोसा रखने के साथ ही इस पर भी यकीन रखना चाहिए कि हमारा शासन-प्रशासन वह सब कुछ करने के लिए यथासंभव कोशिश कर रहा है जो आवश्यक हो चुका है। इस कठिन समय में उसका सहयोग देना हम सबका राष्ट्रीय दायित्व है। नि:संदेह लड़ाई कठिन है और लंबी भी, लेकिन उसे जीतने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं है।