दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने लगातार दूसरी बार जैसी प्रचंड जीत हासिल की वैसा करिश्मा कम ही होता है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत यही बता रही है कि दिल्ली की जनता न केवल उसके कामकाज से खुश है, बल्कि उसे यह भी भरोसा है कि वह अपने वायदों को पूरा करके दिखाएगी। चुनाव नतीजे यह भी रेखांकित कर रहे हैैं कि भले ही विरोधी दलों और खासकर भाजपा ने राष्ट्रीय मसलों को भुनाने की कोशिश की हो, लेकिन दिल्ली की जनता ने स्थानीय मसलों पर ही ध्यान केंद्रित किया।

यह भी साफ है कि दिल्ली के लोग इस नतीजे पर भी पहुंचे कि इन मसलों का अच्छी तरह से निस्तारण केजरीवाल सरकार ही कर सकती है। शायद इसी कारण जिस जनता ने चंद माह पहले दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें भाजपा को दीं उसने विधानसभा में उसका संख्याबल दहाई तक भी नहीं पहुंचने दिया। भाजपा इस पर संतोष कर सकती है कि उसका वोट प्रतिशत बढ़ गया, लेकिन उसे इस पर गंभीरता के साथ गौर करना होगा कि आखिर क्या कारण है कि राजधानी की जनता उसे देश का नेतृत्व संभालने के लिए तो सर्वथा उपयुक्त मानती है, लेकिन दिल्ली के लिए नहींं?

हैरत नहीं कि भाजपा की पराजय के कारणों में एक कारण यह भी हो कि वह अपने किसी नेता को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश नहीं कर पाई। जो भी हो, उसे इसका आभास होना ही चाहिए कि आम तौर पर राज्यों के चुनावों में राष्ट्रीय महत्व के मसले एक सीमा तक ही कारगर होते हैैं। यह हैरानी की बात है कि चुनाव नतीजों से वह कांग्रेस भी संतुष्ट नजर आ रही है जिसका खाता भी नहीं खुला। उसे संतुष्टि इस बात की है कि भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा। इसमें संदेह नहीं कि उसके अनमने ढंग से चुनाव लड़ने से आम आदमी पार्टी को मदद मिली, लेकिन आखिर खुद उसे क्या हासिल हुआ? यदि अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित करने वाली कांग्रेस दिल्ली में लगातार दूसरी बार अपना खाता न खुलने के बाद भी संतुष्ट है तो यही कहा जा सकता है कि वह आत्मघात पर आमादा है।

दिल्ली के नतीजे राजनीतिक दलों पर कुछ न कुछ मनोवैज्ञानिक असर अवश्य डालेंगे, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में कोई बुनियादी बदलाव आने के आसार नहीं और इसकी वजह यही है कि कांग्रेस खुद को कमजोर करने वाले काम कर रही है। नि:संदेह सभी दल अपने-अपने हिसाब से दिल्ली के नतीजों की व्याख्या करेंगे, लेकिन किसी को भी इस निष्कर्ष पर पहुंचने की भूल नहीं करनी चाहिए कि शाहीन बाग का धरना सही है।