इस बार सर्वदलीय बैठकों के बगैर ही संसद का मानसून सत्र आयोजित होने जा रहा है। ये बैठकें कोरोना वायरस से उपजे संकट के कारण नहीं हो सकीं, लेकिन यह कोई खास बात नहीं। इस तरह की बैठकें औपचारिकता ही होती हैं। इन बैठकों के जरिये संसदीय कार्यवाही को सही तरह चलाने का संदेश भले ही दिया जाता हो, लेकिन आम तौर पर इसके उलट काम होता है। क्या कोरोना संकट के कारण इस बार कुछ अलग होगा? इस बारे में कुछ कहना कठिन है, फिर भी उम्मीद यही की जाती है कि पक्ष-विपक्ष दलगत राजनीतिक हितों से परे हटते हुए राष्ट्रीय मसलों पर गंभीर चर्चा कर देश को सही दिशा देने की कोशिश करेंगे।

इस बार ऐसे कई राष्ट्रीय मसले हैं, जिन पर सार्थक चर्चा की कहीं अधिक आवश्यकता है। एक बड़ा मसला तो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अहंकारी-अडि़यल चीन की ओर से पेश की जा रही चुनौती है और दूसरा, कोरोना वायरस के संक्रमण पर लगाम न लग पाना। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को पहुंची तगड़ी चोट भी एक गंभीर विषय है। ऐसे गहन संकट के समय यदि संसद दलगत राजनीति का अखाड़ा बनी तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण बात और कोई नहीं होगी।

संसद के मौजूदा सत्र की ओर देश के साथ दुनिया की भी निगाहें होंगी, क्योंकि विश्व समुदाय यह जानने को उत्सुक होगा कि धोखेबाज चीनी सेना और विस्तारवाद की घिनौनी मानसिकता का प्रदर्शन कर रही चीनी सत्ता के अतिक्रमणकारी रुख पर भारत का राजनीतिक वर्ग सम्मिलित स्वर में अपनी बात कहने के लिए आगे आता है या नहीं? लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के हालात को लेकर होने वाली चर्चा में तानाशाह चीनी शासकों की भी दिलचस्पी होगी। इस दिलचस्पी का एक बड़ा कारण यह है कि जहां वामपंथी दल उनके कुटिल इरादों पर मौन साधे हुए हैं, वहीं कांग्रेस मोदी सरकार को कोसने में लगी हुई है। इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से एक रहस्यमय किस्म का समझौता करने वाली कांग्रेस चीन के बजाय अपनी ही सरकार पर निशाना साधने में लगी हुई है और वह भी इस तथ्य की अनदेखी करके कि चीन से सीमा विवाद उसकी ही देन है।

अगर कांग्रेस संसद में भी यही रवैया अपनाती है तो इससे जाने-अनजाने चीन के मन की मुराद पूरी होगी और एक तरह से उसके हितों की पूíत होगी। चीन के मामले में संसद से निकले अलग-अलग सुरों से विश्व समुदाय को भी कोई अच्छा संदेश नहीं जाएगा। बेहतर हो कि पक्ष-विपक्ष यह समझें कि वक्त का तकाजा यही कहता है कि संसद एक सुर में देश-दुनिया को यह संदेश दे कि भारत का राजनीतिक वर्ग चीन के खिलाफ एकजुट है।