करतारपुर गलियारे के निर्माण के लिए पाकिस्तान में आयोजित समारोह में वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जो कुछ कहा उसके अनुरूप कुछ होने को लेकर संशय पैदा हो गया है तो इस पर हैरत नहीं। इमरान खान किस तरह हकीकत से मुंह चुरा रहे हैैं, यह इससे स्पष्ट है कि उन्होंने करतारपुर साहिब में कश्मीर मसले का जिक्र करना तो जरूरी समझा, लेकिन आतंकवाद पर कुछ नहीं बोले। आखिर इमरान खान लश्कर, जैश, हिजबुल के आतंकियों के साथ मुंबई हमले के गुनहगारों को संरक्षण देकर किस मुंह से भारत से दोस्ती की बातें कर रहे हैैं? उन्होंने यह सफाई भी दी कि वह पुरानी गलतियों के लिए जिम्मेदार नहीं, लेकिन आखिर अपने कार्यकाल के सौ दिनों में उन्होंने ऐसा क्या किया है जिससे भारत उन पर भरोसा कर सके? क्या भारत इसे भुला दे कि मुंबई हमले की दसवीं बरसी पर उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला?

करतारपुर गलियारे को लेकर इमरान खान ने दावा किया कि इस मामले में सेना उनके साथ है। क्या इसका यह भी मतलब है कि कश्मीर के मामले में भी सेना उनके साथ है? अगर है तो फिर किसके सहयोग-समर्थन से पाकिस्तान की धरती पर पल रहे आतंकी कश्मीर में घुसकर वहां खून-खराबा करने में लगे हुए हैैं? आज भले ही इमरान खान भारत से दोस्ती के तराने गा रहे हों, लेकिन चंद दिनों पहले तक वह पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मोदी का यार बताकर गद्दार करार दे रहे थे।

क्या यह महज एक दुर्योग है कि जैसे इमरान खान पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी के भारत विरोधी रवैये से मुंह मोड़कर भारत से संबंध सुधार की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैैं वैसे ही पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी कश्मीर में पाकिस्तान के शातिराना दखल पर गौर किए बगैर डींगे हांकने में लगे हुए हैैं। यह एक त्रासदी ही है कि वह यह तक देखने को तैयार नहीं कि पाकिस्तान किस तरह पंजाब में खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा दे रहा है। यह आरोप और किसी का नहीं, खुद पंजाब के मुख्यमंत्री अर्मंरदर सिंह का है जो उन्होंने हाल की उस आतंकी घटना के बाद लगाया जिसमें तीन लोग मारे गए थे।

नवजोत सिंह ने जैसी बेफिक्री पाकिस्तानी सेना प्रमुख से गले मिलने में दिखाई वैसी ही करतारपुर में खालिस्तानी आतंकी से मिलने में। यह सही है कि वह पिछली बार की तरह इस बार भी व्यक्तिगत हैसियत से पाकिस्तान गए, लेकिन एक नेता और मंत्री होने के नाते भी उनकी कोई जिम्मेदारी बनती है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जो पंजाब पाकिस्तान की हरकतों से इतना अधिक त्रस्त रहा वहां का मंत्री होने के बावजूद वह पाकिस्तानी नेतृत्व का गुणगान करने में लगे हुए हैैं। उनके रुख-रवैये पर अमरिंदर सिंह की आपत्ति किसी से छिपी नहीं, लेकिन अब जब वह पाकिस्तान की कुछ ज्यादा ही पैरवी करने में लगे हुए हैैं तब फिर कांग्रेस नेतृत्व को उनके व्यवहार पर जवाब देना मुश्किल हो सकता है। वह हद से ज्यादा उतावलापन दिखा रहे हैैं। उन्हें इतनी समझ होनी चाहिए कि विदेश नीति के मामले में उतावलेपन के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।