मुंबई में भीषण आतंकी हमले की दसवीं बरसी पर अमेरिकी विदेश मंत्री ने इस हमले के गुनहगारों को सजा सुनाने लायक प्रमाण उपलब्ध कराने वालों को 50 लाख डॉलर देने की घोषणा करके यही रेखांकित किया कि पाकिस्तान ने इस वहशी हमले के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में किस तरह दुनिया की आंखों में धूल झोंकी है। देश ही नहीं, दुनिया को थर्रा देने वाले मुंबई हमले के गुनहगार दस बरस बाद भी खुले आम घूम रहे हैैं तो पाकिस्तान के कुटिल इरादों के कारण। उसने मुंबई हमले की साजिश रचने और बर्बर हमलावरों की मदद करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के नाम पर जैसी बहानेबाजी की है उसकी मिसाल मिलना कठिन है।

यह खेद की बात है कि दुनिया ने इस पाशविक हमले को लेकर पाकिस्तान पर वैसा दबाव नहीं बनाया जैसा अपेक्षित था। इसी कारण पाकिस्तान ने घड़ियाली आंसू बहाकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली। यह उसकी बेशर्मी की पराकाष्ठा ही है कि वह मुंबई हमले के गुनहगारों को सजा दिलाने में अपनी नाकामी का ठीकरा यह कहकर भारत पर फोड़ रहा है कि उसने सारे सुबूत नहीं दिए। यह बदनीयती के अलावा और कुछ नहीं, क्योंकि वहीं साजिश रची गई, वहीं हमलावरों को प्रशिक्षण मिला और हमले के वक्त वहीं से उन्हें निर्देशित भी किया गया। पाकिस्तान की इसी बहानेबाजी के कारण मुंबई हमले का स्मरण कहीं अधिक सालने वाला है। यह भी अफसोस की बात है कि तमाम कोशिश के बाद भारत अपने इस संकल्प को पूरा नहीं कर सका कि मुंबई को दहलाने वाले दंड का भागीदार बनेंगे।

कहना कठिन है कि दस साल बाद भारतीय नेतृत्व पाकिस्तान पर नए सिरे से दबाव बनाने की कोई ठोस पहल कर सकेगा या नहीं और उसमें उसे कोई सफलता मिल सकेगी या नहीं? इससे बहुत उत्साहित नहीं हुआ जा सकता कि अमेरिका ने मुंबई हमले की दसवीं बरसी और पाकिस्तान की कुटिलता का संज्ञान लिया। वह इसे लेकर पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने का काम नहीं कर रहा है कि मुंबई के गुनहगार सजा से क्यों दूर हैैं? यह तब है जब खुद उसके छह नागरिकों ने मुंबई हमले के दौरान जान गंवाई थी।

यह अच्छा हुआ कि जब देश-दुनिया मुंबई हमले का स्मरण कर रही थी तब करतारपुर कॉरिडोर के लिए आयोजित शिलान्यास समारोह में पंजाब के मुख्यमंत्री अर्मंरदर सिंह ने पाकिस्तान को उसकी करतूतों के लिए खरी-खरी सुनाने में संकोच नहीं किया। उन्होंने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को लताड़ लगाकर एक तरह से यही स्पष्ट किया कि इस कॉरिडोर को लेकर पाकिस्तान की ओर से दिखाए जा रही सदाशयता के बाद भी उससे सावधान रहने की जरूरत है।

पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर को लेकर अपनी नेकी का जो प्रदर्शन कर रहा है उसके पीछे उसकी कोई कुटिल सोच भी हो सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पाकिस्तान की इस कुटिल सोच को लेकर मोदी सरकार वैसे ही सतर्क होगी जैसे पंजाब सरकार दिख रही है। नि:संदेह यह कॉरिडोर पाकिस्तान से संबंध सुधार की राह बना सकता है, लेकिन तभी जब वह नेक इरादों का परिचय सचमुच दे। अभी तो वह दोस्ती के नाम पर दगा देने में ही लगा हुआ है।