विपक्षी राजनीति के लिहाज से यह उल्लेखनीय है कि कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में भारी भीड़ के बीच करीब दो दर्जन भाजपा विरोधी दलों ने अपनी एकजुटता दिखाने के साथ ही समवेत स्वर में यह आवाज भी बुलंद की कि मोदी सरकार को उखाड़ फेंकना है। अब जब आम चुनाव करीब आ गए हैं तो एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए सरकार का विरोध करना विपक्षी दलों का अधिकार है। मोदी सरकार की कमजोरियों और साथ ही देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं को रेखांकित करना भी उनका अधिकार है, लेकिन बात तब बनेगी जब विपक्षी दल मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने के क्रम में अपने तर्को से आम जनता को संतुष्ट और साथ ही आकर्षित करने में सक्षम होंगे। इसमें संदेह है कि इस तरह के जुमले असरकारी साबित होंगे कि चौकीदार चोर है। इसी तरह ऐसी अतिरंजित बातों का भी कोई मतलब नहीं दिखता कि मोदी सरकार ने इतिहास-भूगोल के साथ संविधान-लोकतंत्र भी बदल दिया है।

विपक्ष के हमलों का असर बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा कि सरकार की ओर से उनका प्रतिकार कैसे किया जाता है? सत्तापक्ष को यह समझना होगा कि आम जनता विपक्ष की ओर से किसानों की हालत और रोजगार की स्थिति को लेकर उठाए जाने वाले सवालों के संतोषजनक जवाब चाहती है।

यह समझ आता है कि कोई भी सरकार मनगढ़ंत और बेतुके आरोपों का जवाब नहीं दे सकती, लेकिन उसे देश की जनता के मन में कौंध रहे सवालों का समुचित जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए। अभी सत्तापक्ष इस तैयारी से लैस नहीं दिख रहा है। उसमें वैसे तेवर भी नही दिख रहे हैं जैसे 2014 के आम चुनाव के समय दिख रहे थे। ऐसा शायद इसलिए है कि सत्तापक्ष में रहते समय विपक्ष सरीखी भाषा का इस्तेमाल करना कठिन होता है। जो भी हो, मोदी सरकार के सामने विमर्श को अपने पक्ष में बदलने की चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए उसे अपने तौर-तरीके बदलने होंगे। नि:संदेह इसी के साथ विपक्षी दलों को भी यह बताना होगा कि मोदी सरकार को हटाकर वे देश को कैसी सरकार देना चाहते हैं?

मोदी सरकार को हटाने का एजेंडा तो ठीक है, लेकिन यह भी तो बताया जाए कि इसके बाद क्या किया जाएगा? यह केवल बताया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसके प्रति प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की जानी चाहिए। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि विपक्ष का नेता कौन होगा और जीत हासिल करने की स्थिति में उनकी ओर से प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इस मामले में जैसे यह किसी से छिपा नहीं कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखती हैं वैसे ही यह भी प्रकट है कि बसपा प्रमुख मायावती भी इस पद की आकांक्षी हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तो पहले ही यह कह चुके हैं कि अगर जनता चाहेगी तो वह इस पद पर आसीन होना चाहेंगे। ऐसी इच्छा रखने में हर्ज नहीं, लेकिन क्या यह महज एक दुर्योग है कि कोलकाता रैली में न तो मायावती नजर आईं और न ही राहुल गांधी? बेहतर हो कि विपक्षी दल पहले अपनी एकजुटता को भरोसेमंद बनाएं।