यह समझ आता है कि संकीर्ण राजनीतिक कारणों से विपक्षी दलों को कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का फैसला रास नहीं आया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे इस फैसले की आड़ लेकर सरकार को गरीब विरोधी ठहराने की कोशिश करें। हैरानी यह है कि वे यही कर रहे हैं। राहुल गांधी ने इस फैसले को प्रधानमंत्री की ह्यूस्टन में होने वाली रैली से तो जोड़ा ही, यह भी रेखांकित किया कि यह सब शेयर बाजार को गिरने से बचाने के लिए किया गया। उनके मंतव्य को और स्पष्ट किया कपिल सिब्बल ने, जिन्होंने यह टिप्पणी की कि इस फैसले से केवल अमीरों को फायदा होगा। उनकी मानें तो सरकार ने गरीबों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।

कांग्रेसी नेताओं की ये टिप्पणियां यही बताती हैं कि वे एक बार फिर सूट-बूट की सरकार सरीखे किसी जुमले की तलाश में हैं। उन्हें इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जिस समय वे सरकार को अमीर हितैषी और गरीब विरोधी साबित करने में लगे हुए थे, लगभग उसी समय मध्य प्रदेश की कांग्रेसी सरकार पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाने का फैसला कर रही थी।

बेहतर हो कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस यह समझे कि अर्थव्यवस्था नारेबाजी की राजनीति से नहीं चलती और जहां तक गरीबी की बात है तो वह तभी दूर हो सकती है जब उद्योग-धंधों का तेजी से विकास हो। कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का फैसला लेकर सरकार ने यही करने का प्रयास किया है। अगर विपक्ष को यह कदम ठीक नहीं लगा तो फिर उचित यह होता कि वह जुमलेबाजी करने के बजाय अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने वाले उपाय सुझाता।

नि:संदेह गरीबों की चिंता की ही जानी चाहिए, क्योंकि उन्हें निर्धनता की खाई से उबारे बगैर देश को प्रगति के पथ पर नहीं ले जाया जा सकता, लेकिन कम से कम अब तो इस नतीजे पर पहुंच ही जाना चाहिए कि कारोबार जगत को गरीब विरोधी करार देकर गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता। इस बात को जिस दल को सबसे बेहतर तरीके से समझना चाहिए वह कांग्रेस ही हो सकती है, क्योंकि आर्थिक सुधारों का श्रीगणेश उसी ने किया था। विडंबना यह है कि वह जानबूझकर हकीकत से अनजान बने रहना चाहती है। इससे भी खराब बात यह है कि वह आर्थिक मामलों में उस वामपंथी सोच से ग्रस्त होती जा रही है जो दुनिया भर में नाकाम साबित हो चुकी है। कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के फैसले के बहाने मोदी सरकार को गरीब विरोधी ठहराने की कोशिश इसलिए हास्यास्पद है, क्योंकि उसने अपने पहले कार्यकाल में गरीबों को राहत देने के लिए जितने कदम उठाए उतने शायद ही किसी सरकार ने उठाए हों।