निर्वाचन आयोग की ओर से चुनाव सुधारों पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने मत पत्र से चुनाव कराने की जो मांग की उसे गैर-जरूरी मांग के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसा लगता है कि कुछ विपक्षी दलों ने जनता के मन में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के प्रति संशय पैदा करने की ठान ली है। शायद यही कारण है कि उनकी ओर से ऐसे सवाल उछाले गए कि खराब ईवीएम से केवल भाजपा को ही वोट क्यों जाते हैैं? इस सवाल का कोई जवाब इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि यह सवाल ही एक दुष्प्रचार का हिस्सा है।

ईवीएम को लेकर कैसे-कैसे दुष्प्रचार होते हैैं और किस तरह मीडिया का एक हिस्सा भी उसमें शामिल होता है, इसका एक उदाहरण पिछले साल उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के दौरान तब मिला था जब सहारनपुर की एक निर्दलीय प्रत्याशी इस सफेद झूठ के साथ सामने आई थी कि उसके हिस्से में तो खुद उसके घरवालों के ही वोट नहीं दर्ज हुए। उसकी शिकायत को सही मानकार खूब हवा दी गई, लेकिन यह सामने आते ही सबको सांप सूंघ गया कि उसे 87 वोट हासिल हुए हैैं। एक दुष्प्रचार तो दिल्ली विधानसभा में ही किया गया था।

आखिर कौन भूल सकता है कि खुद को इंजीनियर बताने वाले एक विधायक ने किस तरह ईवीएम सरीखे एक खिलौने के जरिये यह साबित करने का स्वांग किया था कि इस मशीन के जरिये वोट इधर-उधर किए जा सकते हैैं? सभी को यह भी याद होगा कि इन इंजीनियर साहब के साथ-साथ अन्य दलों के प्रतिनिधि किस तरह ईवीएम से छेड़छाड़ करने की निर्वाचन आयोग की चुनौती को स्वीकार करने से पीछे हट गए थे?

यह समझ आता है कि राजनीतिक दल ईवीएम में और सुधार की जरूरत जताएं और एक प्रतिशत से अधिक वोटों की जांच की मांग करें, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि वे आगामी आम चुनाव मत पत्र से कराने पर जोर दें। यह तो एक तरह से देश को बैलगाड़ी युग में ले जाने वाली मांग है। क्या विपक्षी दल इससे परिचित नहीं कि मत पत्र से मतदान के दौरान किस तरह बड़े पैमाने पर धांधली होती थी? यदि वे भूल गए हों तो हाल में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनावों का स्मरण करें, जब तृणमूल कार्यकर्ताओं ने मत पत्र लूटने के साथ मतपेटियां तालाबों और कुओं में फेंक दी थीं।

आखिर यह ढिठाई नहीं तो और क्या है कि निर्वाचन आयोग के समक्ष तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधि ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि मत पत्र सुरक्षित हैैं और साफ-सुथरी चुनाव प्रक्रिया में उनका बहुत योगदान है। ईवीएम को बदनाम करने के पहले विपक्षी दल यह याद रखें तो बेहतर कि दिल्ली, बिहार, पंजाब आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव और हाल के कई उपचुनावों के नतीजे इसी मशीन से ही निकले हैैं? समस्या केवल यह नहीं कि ईवीएम को संदिग्ध बताया जा रहा है, बल्कि यह भी है कि निर्वाचन आयोग की साख पर प्रहार किया जा रहा है। आयोग के बारे में राहुल गांधी का ताजा कथन दुष्प्रचार की राजनीति का हिस्सा ही नजर आता है।